रेलवे फाटक बना नैनपुर का यमराज
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| रचनात्मक फोटो |
रेलवे फाटक बना नैनपुर का यमराज
- इलाज से पहले मौत की परीक्षा, कब जागेगा सिस्टम?
नैनपुर। जिस रेलवे को विकास की रफ्तार कहा गया था, वही आज नैनपुर में मौत का रास्ता बन चुकी है। नगर का रेलवे समपार अब सिर्फ एक फाटक नहीं, बल्कि मरीजों की सांसें रोकने वाला यमराज बन गया है।
दिनभर में 30 से 35 बार बंद होने वाला यह फाटक नैनपुर को दो हिस्सों में काट देता है। एक तरफ आबादी, दूसरी तरफ 100 बिस्तरों वाला शासकीय अस्पताल। बीच में खड़ी है—सरकारी लापरवाही की दीवार।
जैसे ही फाटक बंद होता है, सड़कों पर जाम लग जाता है। छात्र-छात्राएं, बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं और गंभीर मरीज सड़क पर फंसे रहते हैं। एंबुलेंस तक इंतजार में खड़ी रहती है।
सवाल यह है— क्या किसी मरीज की जान ट्रेन से कम कीमती है?
यहां हर मिनट भारी पड़ता है। इलाज के लिए निकले मरीज को पहले रेलवे फाटक की अनुमति लेनी पड़ती है। कई बार हालत बिगड़ती है, कई बार देर हो जाती है, और कई बार… सब कुछ खत्म हो जाता है।। नगरवासियों का आरोप है कि यह फाटक अब अप्रत्यक्ष रूप से मौतों का कारण बन चुका है। सबसे शर्मनाक तथ्य यह है कि यह समस्या नई नहीं है। वर्षों से ओवरब्रिज की मांग की जा रही है। ज्ञापन दिए गए, नेताओं के दरवाजे खटखटाए गए,।
अधिकारियों को चेताया गया—लेकिन हर बार मिला सिर्फ आश्वासन और मौन।
प्रश्न सीधा है—
अगर फाटक पर फंसी एंबुलेंस में किसी की मौत हो जाए, तो हत्या का जिम्मेदार कौन होगा?
रेलवे, प्रशासन या जनप्रतिनिधि?
नैनपुर के नागरिक पूछ रहे हैं कि क्या यह नगर वोट बैंक तक ही सीमित है? चुनाव के समय विकास के सपने दिखाए जाते हैं, लेकिन हकीकत में जनता को मौत के रास्ते पर छोड़ दिया जाता है।
आज नैनपुर का रेलवे समपार प्रशासनिक नाकामी का स्मारक बन चुका है। जब तक कोई बड़ा हादसा नहीं होगा, क्या तब तक सरकार सोती रहेगी? या फिर किसी वीआईपी के फंसने का इंतजार है?
अब चेतावनी साफ है—
- ओवरब्रिज कोई सुविधा नहीं, यह जीवन रक्षक मांग है।
- हर देरी, हर चुप्पी, हर अनदेखी—सीधे जानलेवा है।
- अगर अब भी निर्णय नहीं लिया गया, तो आने वाले दिनों में यह सवाल और गूंजेगा—
- “नैनपुर में मरीज ट्रेन से नहीं, सिस्टम से कुचले जा रहे हैं।”
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