एक साइकिल, एक संकल्प और एक साल की तपस्या
एक साइकिल, एक संकल्प और एक साल की तपस्या
- पाठासिहोरा से उठती समाज की अंतरात्मा की आवाज़
नैनपुर - नैनपुर विकासखंड की ग्राम पंचायत पाठासिहोरा आज किसी सरकारी योजना या शोर-शराबे वाले आयोजन के कारण नहीं, बल्कि एक निशब्द तपस्वी के संकल्प के कारण चर्चा में है। पूर्णकालिक समाजसेवी भीकम भाई साहब साइकिल पर कला प्रदर्शन करते हुए वह सवाल खड़े कर रहे हैं, जिनसे व्यवस्था अक्सर आंखें चुरा लेती है।
11 दिसंबर 2024 से 11 दिसंबर 2025—एक पूरा वर्ष।
न कोई अन्न, न कोई दिखावा, न कोई राजनीतिक मंच।
सिर्फ एक साइकिल, शरीर की सीमाओं को चुनौती देता संकल्प और समाज के लिए समर्पण।
यह केवल कला नहीं है, यह आत्मबल का प्रदर्शन है। यह पूछता है—
क्या आज का समाज इतना संवेदनशील बचा है कि ऐसे त्याग को समझ सके?
भीकम भाई साहब का यह व्रत अब अनिश्चितकालीन हो चुका है। यह तय नहीं कि यह साधना कब समाप्त होगी, लेकिन इतना स्पष्ट है कि यह यात्रा सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे समाज की आत्मपरीक्षा है।
आज जब स्वार्थ, दिखावे और भीड़ की राजनीति चरम पर है, तब पाठासिहोरा की सड़क पर चलती यह साइकिल हमें देशप्रेम का असली अर्थ समझाती है—
बिना शोर, बिना लाभ, सिर्फ सेवा।
इस अभियान के साथ चल रहे नेत्र शिविर यह साबित करते हैं कि सेवा भाषणों से नहीं, कर्म से होती है।
दादा जी वीरेंद्र पुरी नेत्रालय सेवा संकल्प,
डॉ. पवन स्थापक एवं उनकी टीम,
तथा पाठासिहोरा के शासकीय चिकित्सकों का सहयोग इस बात का प्रमाण है कि जब नीयत साफ हो, तो व्यवस्था भी साथ खड़ी होती है।
वहीं बी.के. आज़ाद चंद एवं धर्म रक्षा समिति का स्पष्ट संदेश है—
धर्म परिवर्तन नहीं, धर्म संरक्षण;
भटकाव नहीं, घर वापसी;
विभाजन नहीं, समरसता।
यह कोई समयबद्ध अभियान नहीं है, बल्कि पीढ़ियों से जुड़े प्रश्नों पर किया गया प्रयास है। समाज का बढ़ता सहयोग बताता है कि यह आवाज़ अब अकेली नहीं रही।
आज जरूरत है कि शासन, प्रशासन और समाज—तीनों यह समझें कि भीकम भाई साहब जैसे लोग समस्या नहीं, समाधान हैं।
यदि ऐसे संकल्पों को नजरअंदाज किया गया, तो इतिहास यह सवाल जरूर पूछेगा—
जब समाज को आईना दिखाया जा रहा था, तब हम कहां थे?
पाठासिहोरा की यह साइकिल केवल चल नहीं रही—
यह समाज की सोई चेतना को झकझोर रही है
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