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मंडला की चुप्पी अब तोड़नी होगी — सांसद, विधायक सीट को सामान्य बनाया जाए!

 


मंडला की चुप्पी अब तोड़नी होगी — सांसद, विधायक सीट को सामान्य बनाया जाए!                               .           .

  • मंडला रेलवे विस्तार: दशकों से सिर्फ वादे, काम अधूरा!


  • आरक्षित सीट पर विकास का ग्राफ सबसे नीचे — जनता का आरोप


  • सामान्य सीट बनने से आएगी राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और जवाबदेही


मंडला - मंडला जिसे आदिवासी संस्कृति का गहना कहा जाता है, आज भी विकास की दौड़ में पिछड़ता जा रहा है।

रेलवे लाइन से लेकर उद्योग, शिक्षा से लेकर रोज़गार — हर मोर्चे पर मंडला सिर्फ वादों के सहारे जिंदा है।

लोगों का सवाल सीधा है — क्या इस हालात का एक बड़ा कारण यह नहीं कि सांसद और विधायक सीट को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रखा गया है, और इस वजह से यहां के प्रतिनिधियों पर राजनीतिक दबाव और प्रतिस्पर्धा उतनी नहीं है, जितनी एक सामान्य सीट पर होती?

सच्चाई कड़वी है — जब देश विकसित भारत की ओर बढ़ रहा है, तब मंडला आज भी बुनियादी सुविधाओं को तरस रहा है।

अगर यहां के जनप्रतिनिधि वास्तव में जागरूक और दूरदर्शी होते, तो आज जबलपुर से सीधे मंडला, धंसौर से मंडला, और बिलासपुर से डिंडोरी होकर मंडला तक रेलवे लाइन बिछ चुकी होती।

लेकिन हुआ उल्टा — पद की कुर्सी को निजी विकास का साधन बनाया गया और मंडला को अंधकार में छोड़ दिया गया।

जनता अब कह रही है:

"सांसद और विधायक सीट को सामान्य सीट बनाया जाए — ताकि इस क्षेत्र में मजबूत राजनीतिक प्रतिस्पर्धा हो, और जो भी प्रतिनिधि बने, वह मंडला के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाए!"

ये सिर्फ एक मांग नहीं — मंडला की गरिमा और भविष्य का सवाल है।

अगर अब भी चुप्पी रही, तो आने वाले वर्षों में हम और पीछे चले जाएंगे, और बाकी दुनिया हमें सिर्फ पिछड़े जिले के नाम से याद करेगी।

अब मंडला उठे, बोले, और अपने हक के लिए लड़े — क्योंकि चुप्पी अब अपराध है!

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