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बेसहारों का कोई सहारा नहीं: वृद्ध, अनाथ और विक्षिप्तों के लिए नहीं कोई ठिकाना



 बेसहारों का कोई सहारा नहीं: वृद्ध, अनाथ और विक्षिप्तों के लिए नहीं कोई ठिकाना


  • सड़कों पर लाचार वृद्ध, अनाथ बच्चे और मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति


  • बारिश, धूप या ठंड—इनकी कोई परवाह नहीं, क्योंकि इनके सिर पर ना छत है, ना सहारा


नैनपुर - मंडला जिला भौगोलिक रूप से भले ही आदिवासी बहुल, प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध हो, लेकिन सामाजिक सरोकारों के क्षेत्र में यह जिला आज भी पिछड़ा हुआ है। जिले में न तो वृद्धजनों के लिए कोई उचित वृद्धाश्रम है, न ही अनाथ बच्चों के लिए कोई सरकारी अनाथ आश्रम, और न ही मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्तियों के लिए कोई देखरेख या रहने की सुरक्षित व्यवस्था।यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। आए दिन सड़कों पर लाचार वृद्ध, अनाथ बच्चे और मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों को इधर-उधर भटकते देखा जा सकता है। बारिश, धूप या ठंड—इनकी कोई परवाह नहीं, क्योंकि इनके सिर पर ना छत है, ना सहारा। सामाजिक संगठनों की मदद सीमित है और सरकारी तंत्र पूरी तरह से नदारद। यह प्रश्न शासन, प्रशासन,जनप्रतिनिधियों, विधायक और मंत्रियों से सीधा संवाद चाहता है—क्या इन बेसहारों के लिए कोई नीति नहीं बननी चाहिए? क्या  नगर  में अब तक एक भी समुचित वृद्धाश्रम या अनाथालय न होना हमारी संवेदनहीनता को उजागर नहीं करता? जनता की ओर से मांग है कि जल्द से जल्द वृद्धों के लिए सुरक्षित वृद्धाश्रम, अनाथों के लिए वात्सल्य से भरे अनाथ आश्रम और विक्षिप्तों के लिए चिकित्सकीय निगरानी में सुरक्षित निवास केंद्र स्थापित किए जाएं, जिससे वास्तव में 'सभी के लिए' जीने योग्य जिला बन सके।



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