21 किमी के बाद माँ नर्मदा बदलती है अपनी दिशा
21 किमी के बाद माँ नर्मदा बदलती है अपनी दिशा
- माँ नर्मदा की उत्तरवाहिनी परिक्रमा की तैयारियां पूर्ण
- परिक्रमावासियों के लिए जगह-जगह हुई व्यवस्थाएं
- 32 समूहों में 2350 श्रृद्धालु कर चुके उत्तरवाहिनी माँ नर्मदा परिक्रमा
- दूसरे चरण में एक हजार से ज्यादा श्रृद्धालु होंगे शामिल

मंडला . महिष्मति मां नर्मदा उत्तरवाहिनी परिक्रमा आयोजन समिति के तत्वावधान में इस वर्ष भी बार दो बार उत्तरवाहनी नर्मदा परिक्रमा आयोजित की गई। पहली परिक्रमा 27-28 मार्च को आयोजित की गई और दूसरे चरण में आज 19 अप्रैल को शुरू की जाएगी जो 20 अप्रैल को सपंन्न होगी। यह परिक्रमा पूर्णतया नि:शुल्क हैं, जिसके कारण बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हो रहे है। बताया गया कि प्रथम चरण और द्वितीय चरण के बीच करीब 32 समूहों में भारत के अलग-अलग राज्यों से 2350 श्रृद्धालुओं ने आकर पैदल और वाहन से माँ नर्मदा की उत्तरवाहिनी परिक्रमा की। 19 अप्रैल को शुरू होने वाली परिक्रमा की तैयारी समिति द्वारा कर ली गई है। श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की समस्या ना हो इसका ध्यान रखा जाएगा। दूसरे चरण की उत्तरवाहिनी माँ नर्मदा की परिक्रमा में एक हजार से अधिक श्रृद्धालुओं के पहुंचने का अनूमान लगाया गया है।

श्रद्धालुओं की संख्या के आधार पर अलग अलग स्थानो में श्रद्धालुओं के ठहरने की व्यवस्था की गई है। पंजीयन क्रम के आधार पर 5 अलग स्थानों में रात्रि भोजन, विश्राम की व्यवस्था रहेगी। बबैहा और ग्वारी रात्रि विश्राम वाले यात्रियों का दोबारा तट परिवर्तन पहले ही दिन हो जाएगा। इस बार श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं बनाई जा रही है। दूसरे चरण की उत्तरवाहिनी परिक्रमा के पथ में बदलाव किया गया है। अब मुख्य मार्ग से ना जाकर नर्मदा किनारे बने पथ से श्रृद्धालु दूसरे दिन परिक्रमा में लौटेंगे। इसके साथ ही परिक्रमा के समापन के बाद शाम करीब 5.30 बजे अन्य जिलों और राज्यों से आए परिक्रमावासियों को प्रशस्ति पत्र दिया जाएगा।

सुबह 6.30 बजे होगा तट परिवर्तन
आज शनिवार सुबह यात्रा शुरू की जाएगी। सुबह व्यास नारायण मंदिर किलाघाट से सुबह 5.30 बजे श्रद्धालु एकत्रीत होंगे। जहां संकल्प पूजन कराया जाएगा। तट परिवर्तन सुबह 6.30 बजे कराया जाएगा। यात्रा के प्रथम दिवस श्री व्यास नारायण मंदिर किला घाट, मंडला झूलापुल, नाव से तट परिवर्तन सकवाह पुरवा संगम घाट, महाराजपुर नावघाट मंगलेश्वर मंदिर गुरुद्वारा-दादा धनीराम आश्रम, कारीकोन में स्वल्पाहार के बाद मानादेही में चाय बिस्किट की व्यवस्था, सुरंगदेवरी कोठीघाट आश्रम, सिलपुरा में दोपहर भोजन इसके बाद घाघा-घाघी, ग्वारी में रात्रि भोजन, विश्रास रखा गया है। इसके बाद द्वितीय दिवस नाव से तट परिवर्तन करके बबैहा हाई स्कूल ग्वारी पहुंचकर वहां स्वल्पाहार, चाय, फूलसागर तिंदनी गाजीपुर एमपीटी के बगल से अंदर पगडंडी मार्ग से गुरुकुल, गाजीपुर से नाला पार करके सहस्त्रधारा, गौंझी से देवदरा से नेहरू स्मारक से जेलघाट से नावघाट से बुधवारी चौक से श्री व्यास नारायण मंदिर किलाघाट में यात्रा का समापन किया जाएगा।

उत्तरवाहिनी परिक्रमा का है महत्व
उत्तवाहिनी परिक्रमा का विशेष महत्व है। पतित पावनी जगत तारिणी मां नर्मदा जिस स्थान पर उत्तर दिशा में प्रवाहित होती है, उस क्षेत्र को उत्तरवाहिनी क्षेत्र कहते हैं। स्कंध पुराण, मतस्य पुराण, वायु पुराण, पद्मपुराण और भृगु संहिता में वर्णित रेवाखंड के श्लोक में वर्णन आता है कि मार्कण्डेय मुनि जी ने युधिष्ठिर सहित पाण्डवों और कुछ देवताओं को उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित हुई नर्मदा जी के स्थानों का महत्व कहा है। चैत्र मास में उत्तरवाहिनी मां नर्मदा परिक्रमा करने से सम्पूर्ण परिक्रमा का फल प्राप्त होता है। जिले में व्यासनारायण मंदिर व मां सरस्वती का प्रस्त्रवण तीर्थ से घाघी स्थान तक कुल 21 किलोमीटर तक उत्तर दिशा में मां नर्मदा बहती है उसके तुरंत बाद मां अपनी प्रवाह की दिशा बदल देती है।

मार्ग में पड़ेंगे कई तीर्थ स्थल
मार्ग में नर्मदा तट में कई तीर्थ स्थल पड़ेंगे। जिसमें सबसे पहले श्री व्यास नारायण मंदिर है। मान्यता है कि व्यास नारायण मंदिर किसी काल में ऋषि वेद व्यास जी का आश्रम था और यह स्थान नर्मदा मैया के दक्षिण तट में स्थित था। आश्रम में भ्रमण करते हुये सप्तऋषियों का आगमन हुआ। वेद व्यास जी ने ऋषियों से भोजन प्रसादी ग्रहण करने का आग्रह किया, लेकिन दक्षिण तट पितृ तट होने के कारण ऋषियों ने मना कर दिया। तब वेद व्यास जी ने नर्मदा मैया को मार्ग बदलने का आग्रह किया लेकिन उन्होने नहीं माना। तब व्यास जी ने भोलेनाथ की आराधना व्यास नारायण के रूप में की तो भोलेबाबा प्रसन्न होकर नर्मदा मैया को अपना मार्ग बदलने को कहा। वेद व्यास जी ने अपने दंड से रेखा खींचते हुये, मैया को मार्ग बतलाया तब से व्यास जी का यह दंड व्यास दंड के रूप में बतलाया गया। प्रत्येक परिक्रमावासी आज भी यह दंड व्यास दंड के रूप में रखने का विधान है, जो कि महिष्मती मां नर्मदा उत्तरवाहिनी परिक्रमा का आरंभ एवं समापन स्थल है।

त्रिवेणी संगम भी है यहां
माँ सरस्वती का प्रस्त्रवण तीर्थ (विष्णुपुरी) ग्राम पुरवा का भी श्रद्धालुओं को लाभ मिलेगा। यहां की मान्यता है कि नर्मदा मैया के तट पर अनेकों जल धारायें है जो किसी न किसी सनातन साक्ष्य की घटना के साक्षी हैं लेकिन विष्णुपुरी में ज्ञान की देवी माँ सरस्वती ने स्वयं ज्ञान की आराधना की, जिसके कारण यहां माँ सरस्वती का प्रस्त्रवण तीर्थ कहलाया। महिष्मति माँ नर्मदा उत्तरवाहिनी परिक्रमा किला घाट से नाव द्वारा प्रस्त्रवण तीर्थ (विष्णुपुरी) पुरवा पहुंचेगी। मां सरस्वती जी की गुप्त धारा मां नर्मदा में मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है।

सहस्त्रधारा भी मार्ग में पड़ेगा
बताया गया कि महिष्मति नगरी के निकट कार्तिकवीर्य सहस्त्रार्जुन की तपस्थली रही है जो आज सहस्त्रधारा के नाम से जाना जाता है, यहीं पर कार्तिकवीर्य अर्जुन ने भगवान भोले नाथ को प्रसन्न कर सहस्त्रार्जुन होने का वर प्राप्त किया। यह तीर्थ आज भी महिष्मति के गौरव कार्तिकवीर्य सहस्त्रार्जुन के तप को सनातन साक्ष्य के रूप में प्रमाणित करता है।

ये सावधानी बरतने की अपील
- परिक्रमा के दौरान अनावश्यक प्लास्टिक, पॉलिथीन का प्रयोग न करें।
- अपने साथ भोजन पात्र एवं पानी के लिए बॉटल साथ में रखें।
- सम्भव हो तो परिक्रमावासियों के सफेद या भगवा रंग कपड़े का प्रयोग करें।
- मौसमानुकूल ओडऩे, बिछाने के लिए कपड़े साथ में रखें।
- अनावश्यक बातचीत न करते हुये अपने ईष्ठ का नाम स्मरण करें।
- स्वास्थ्य संबंधी गोली दवाई चल रही हो तो साथ लेकर चलें।
- परिक्रमावासी पूजन, आरती की सामग्री साथ लेकर चलें।
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