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शरद पूर्णिमा में बरसा आसमान से अमृत

 


  • शरद पूर्णिमा में बरसा आसमान से अमृत
  • देर रात तक मंदिरों में चला भजन, कीर्तन का दौर
  • अल सुबह से नर्मदा तट और मंदिरों में भक्तों रहा तांता

मंडला . अश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर शरद पूर्णिमा मनाई गई। सोलह कलाओं से परिपूर्ण चंद्रमा का उदय हुआ। मान्यता के अनुरूप उसकी रोशनी में ओस के साथ आसमान से अमृत की वर्षा हुई। लिहाजा लोगों ने खीर समेत अन्य मीठे व्यंजन बनाकर उन्हें घरों की छत पर रखा। वहीं दिन में मंदिरों में धन की देवी मां लक्ष्मी व कुबेर की पूजा की गई। दिनभर धार्मिक आयोजन मंदिरों, घरों में चलते रहे। महिलाओं इस अवसर पर व्रत भी रखा।

बताया गया कि शरद पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं ने भोर में ही उठकर सरोवरों व नदी आदि में स्नान किया। फिर मंदिरों में जाकर अपने ईष्ट देवों की पूजा की। उन्हें फूल व अन्य पूजन सामग्री अर्पित की। इसके साथ ही शहर के सभी मंदिरों में शरद पूर्णिमा पर विशेष पूजन किया गया। लक्ष्मीनारायण मंदिर, श्रीराम मंदिर समेत अन्य मंदिरों में पूजा-अर्चना की गई। साथ ही महिला मंडलियों ने शाम से रात तक भजनों की प्रस्तुति दी गई। इसी कड़ी में रात के समय घरों में खीर समेत अन्य मीठे व्यंजन तैयार किए गए। देर शाम पूर्ण चंद्रमा का उदय हुआ। मान्यता है कि इस दिन वह अपनी सोलह कलाओं के साथ परिपूर्ण होता है। ऐसे में रात में अमृत की वर्षा होती है। लिहाजा खीर बनाकर उन्हें छत पर रखा गया, इस उम्मीद के साथ की चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होगी। फिर देर रात उन्हें निकालकर सपरिवार ग्रहण किया गया। वहीं कुछ घरों में अगले दिन सुबह के लिए उन्हें रखा गया।

शरद पूर्णिमा के मौके पर जिले भर के मंदिरों व घरों में लोगों ने चंद्रमा की दूधियां रोशनी में भगवान विष्णु व तुलसी की पूजन अर्चना की। महिलाओं ने भगवान को मावा, मिश्री से निर्मित लड्डुओं का भोग अर्पित कर अपने परिवार व पुत्रों की खुशहाली के कामना की। अश्विनी मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होकर आकाश में अमृत बर्षा करता है तथा वैभव की देवी लक्ष्मी अपने पति श्रीहरि के साथ पृथ्वी लोग के भ्रमण के लिए आती है। लक्ष्मी-विष्णु के स्वागत के लिए शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। मंदिरों में देर रात तक भजन-कीर्तन के कार्यक्रम चलते रहे।

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