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अमेरिका की हथेली पर मोदी की ताली

अमेरिका की हथेली पर मोदी की ताली





बिस्मार्क के बारे में कहा जाता था कि वह एक ऐसा राजनैतिक जगलर था जो पांच गेंदों से खेलता था जिसमें से तीन हवा में रहतीं थीं।" 


फिर पिछले शताब्दी से लेकर अब तक कोई ऐसा कूटनीतिज्ञ नहीं देखा गया जो कूटनीति को इस तरह खेले। 


लेकिन जिस तरह से मोदीजी ने विश्व राजनीति में भारत के हितों को साधा हुआ है उसे देखकर बिस्मार्क भी अपने होठों को दांतों से चबा रहा होगा। 


-इजरायल के प्रधानमंत्री अमेरिकी राष्ट्रपति व पोप के बाद सिर्फ मोदीजी को रिसीव करने एयरपोर्ट जाते हैं।


-अरब जगत में मोदी के लिये लाल कालीन बिछाने की होड़ लगी है। 


-सऊदी अरब इजरायल जाने के लिये केवल मोदी के विमान के लिये अपना एयरोस्पेस खोलता है। 


-ब्रिटेन की महारानी मोदी से हाथ मिलाने के लिये अपने दस्ताने ना उतारने की अपनी परंपरा तोड़ देती है। 


-फ्रांस के राष्ट्रपति उन्हें जी7 में विशेष रूप से आमंत्रित करते हैं। 


इतने स्वागत व अभिनंदन के बाद किसी भी मनुष्य की विवेकशक्ति कुंठित हो सकती है लेकिन मोदी इससे अभी तक सफलतापूर्वक बचते रहे हैं क्योंकि उनकी नजरों के सामने सिर्फ एक सच्चाई छाई रहती है और वह है-- #भारत 


शायद इसीलिये इतने स्वागत सत्कार के बाद भी लौटकर इजरायल को दिये मिसाइलों के ऑर्डर को रद्द कर देते हैं और येरुशलम को इजरायल की राजधानी का दर्जा देने से इनकार कर देते हैं। 


शायद इसीलिये ट्रंप से गलबहियां करने के बावजूद रूस से 'एस 400 मिसाइल रक्षा प्रणाली' खरीदने का समझौता कर लेते हैं और  अमेरिकी प्रतिबंधों को ठेंगा दिखा देते हैं। 


ऐसा इसलिये कि उन्हें सिर्फ भारत के हित ही दिखाई देते हैं और यही कारण है कि डोकलाम पर चीन की बाँहें मरोड़ने और चाबहर बंदरगाह के जरिये चीन के 'पर्ल ऑफ स्ट्रिंग' की महत्वाकांक्षी परियोजना के ताबूत में कील ठोंक देने के बावजूद पिछले वर्ष चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के एक त्वरित आमंत्रण पर प्रोटोकॉल को दरकिनार कर पीकिंग पहुंच गये थे। उस समय मैंने एक पोस्ट में लिखा था कि यह मेरा अंदाजा है कि यह भेंट सिर्फ पाकिस्तानी मुर्गे को हलाल कर उसे बांटने को लेकर है जो अभी तो सफल नहीं होगी लेकिन जब बलूचिस्तान में अराजकता चरम पर होगी व "सी पैक रूपी सांप का मुंह ग्वादर पोर्ट" बुरी तरह कुचल जायेगा जो अब चीन के गले की नस बन गया है, तब चीन को वही करना होगा जो भारत चाहेगा और अब वह वक्त आ चुका है। 


कोई आश्चर्य नहीं कि सी पैक को लेकर फंसा हुआ व सिक्यांग में तालिबान के प्रवेश से आतंकित चीन  और अफगानिस्तान में फंसा अमेरिका भारत को अफगानिस्तान से जोड़ने के लिये पाक कब्जे वाले कश्मीर को भारत को सौंपने पर राजी हो जायें ताकि भारत की सीमायें सीधे अफगानिस्तान से जुड़ सकें और अगर ऐसा हो गया तो--


-भारत संपूर्ण एशिया का भाग्यविधाता बन जायेगा। 


चीन इस बात को जानकर भी भारत को समर्थन देने पर मजबूर है। चीन को 'सांप छछूंदर की गति' तक पहुंचा देने वाली कूटनीति का ऐसा उदाहरण ढूंढना मुश्किल है। 


-यही विवशता अमेरिका की है जिसे एशिया की शक्ति के रूप में किसी एक को चुनना होगा और जाहिर है वह भारत ही होगा। 


इसीलिये अमेरिका की इसी विवशता का आनंद उठाते हुए मोदी जी ने बडे ठंडे अंदाज में  हिंदी में अमेरिका को बोल दिया कि 'किसी' को कश्मीर के मुद्दे पर 'कष्ट' उठाने की जरूरत नहीं और 'टेलीट्रांसलेटर' से सबकुछ समझ रहे ट्रंप ने खिसियानी हंसी हंसते हुये मोदी को कहा कि मोदी अच्छी अंग्रेजी बोल सकते हैं, पर बोल नहीं रहे।


संदेश स्पष्ट है, "यह पूरा क्षेत्र भारत ही था और अभी भी भारत का ही है, इस भूक्षेत्र में 'खेलना' है तो नियम भारत तय करेगा।"


ईरान, रूस, इजरायल, अमेरिका चीन ये पांच गेंदें हैं जिससे मोदी इस समय खेल रहे हैं। 


और पाकिस्तान?


कौन पाकिस्तान???? 


सांडों के ग्रेट गेम में पिल्लों का क्या काम? ??

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