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नरवाई प्रबंधन में कारगर हैप्पी सीडर, लागत आधी, उत्पादन में वृद्धि

 


नरवाई प्रबंधन में कारगर हैप्पी सीडर, लागत आधी, उत्पादन में वृद्धि 

नरवाई प्रबंधन जागरूकता में कारगर साबित हैप्पी सीडर से बोनी

  • नरवाई प्रबंधन में कारगर हैप्पी सीडर, लागत आधी, उत्पादन में 30 प्रतिशत तक वृद्धि
  • मंडला के किसान ऋषि ठाकुर ने अपनाया नया कृषि यंत्र
  • परंपरागत विधि से 10-12 हज़ार का खर्च सिमटा मात्र 2000 रुपये में

नैनपुर-  नरवाई (फसल अवशेष) प्रबंधन और खेती की लागत को कम करने की दिशा में हैप्पी सीडर कृषि यंत्र मंडला जिले के किसानों के लिए एक गेम चेंजर साबित हो रहा है। कृषि अभियांत्रिकी विभाग के माध्यम से किए गए एक प्रदर्शन ने यह सिद्ध कर दिया है कि इस यंत्र की सहायता से न केवल खेत की तैयारी और बोनी का खर्च आधा हो जाता है, बल्कि उत्पादन में भी 25 से 30 प्रतिशत की महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की जा सकती है।

विकासखंड नैनपुर के ग्राम समनापुर के प्रगतिशील कृषक, ऋषि ठाकुर, ने इस यंत्र का सफल प्रयोग किया है। कृषि अभियांत्रिकी विभाग से सहायक कृषि यंत्री, मंडला, प्रियंका मेश्राम और उपयंत्री भावना मरावी ने बताया कि किसान ऋषि ठाकुर पहले खेतों में खड़ी नरवाई को जलाते थे। नरवाई जलाने से ज़मीन की उर्वरता घटती थी और प्रदूषण भी फैलता था, जो एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है। विभाग द्वारा उन्हें नरवाई को बिना जलाए गेहूं की बोनी के लिए ‘हैप्पी सीडर’ यंत्र का प्रदर्शन कराया गया।

लागत और श्रम में भारी कटौती 

ऋषि ठाकुर ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि परंपरागत तरीके से बोनी करने में उन्हें खेत की तैयारी में दो से तीन बार कल्टीवेटर चलाना पड़ता था, जिस पर प्रति एकड़ लगभग 2400-3600 रुपये का खर्च आता था। इसके बाद, बीज को छिड़क कर मिट्टी में मिलाने के लिए फिर से दो बार कल्टीवेटर चलाने में लगभग 2400 रुपये खर्च होते थे।
परंपरागत विधि में बीज की मात्रा भी मानदंड से अधिक यानी लगभग 60 किग्रा प्रति एकड़ लगती थी, और खरपतवार की समस्या भी अधिक होती थी। खरपतवार की सफाई में 3 से 5 मजदूरों की आवश्यकता होती थी, जिससे 600 से 1000 रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ता था। इस प्रकार, खेत की तैयारी, बीज, खाद, और खरपतवार की सफाई आदि का कुल खर्च जोड़कर, एक एकड़ में बोनी की लागत 10 से 12 हजार रुपये तक पहुँच जाती थी। साथ ही, इसमें श्रम और समय भी काफी अधिक लगता था।

उत्पादन में वृद्धि और खाद की बचत 

हैप्पी सीडर यंत्र ने इस पूरी प्रक्रिया को क्रांति ला दी है। यह यंत्र एक ही बार में नरवाई को काटकर उसे मिट्टी के ऊपर बिछा देता है, जो मल्चिंग का कार्य करती है। बाद में यह नरवाई सड़कर जैविक खाद बन जाती है। इस प्रकार, यह यंत्र नरवाई प्रबंधन, खेत की तैयारी और बोनी तीनों कार्य एक ही समय में और एक ही बार में कर देता है। ऋषि ठाकुर ने बताया कि इस यंत्र की वजह से एक एकड़ में बोनी का कुल खर्च (खाद, ट्रैक्टर यंत्र सहित) सिमटकर मात्र 2000 रुपये हो गया है, जो परंपरागत तरीके से होने वाले खर्च का लगभग पाँचवाँ हिस्सा है। इसके अलावा, इस विधि से बोनी में बीज की मात्रा भी कम लगती है, और अधिक अंकुरण होता है। ऋषि ठाकुर ने बताया कि नरवाई मल्चिंग के बाद खाद बन जाती है, इसलिए रासायनिक खाद की खपत भी कम हो गई है। परंपरागत तरीके से डाली जाने वाली खाद की मात्रा से 30 से 40 प्रतिशत कम खाद (लगभग 30 किग्रा प्रति एकड़) की आवश्यकता होती है। सबसे महत्वपूर्ण बात, उत्पादन में वृद्धि हुई है। किसान श्री ठाकुर को उम्मीद है कि इस विधि से परंपरागत पद्धति की तुलना में लगभग 25 से 30 प्रतिशत अधिक उत्पादन होगा, यानी प्रति एकड़ 5 से 6 क्विंटल तक अधिक उपज मिलेगी। यह यंत्र खरपतवार को नियंत्रित करने में भी प्रभावी साबित हुआ है।

किसानों को मिल रहा अनुदान 

कृषि अभियांत्रिकी विभाग यह मशीन किसानों को अनुदान पर उपलब्ध करा रहा है। यंत्र की कीमत लगभग 1.72 लाख रुपये है, जिस पर अधिकतम 82 हजार रुपये तक का अनुदान दिया जा रहा है। प्रदर्शन देखने वाले अन्य कृषकों ने भी इस मशीन की सराहना की है और इसे खरीदने में रुचि दिखाई है, जिससे क्षेत्र में नरवाई जलाने की प्रथा पर रोक लगने और कृषि को अधिक लाभदायक बनाने की उम्मीद जगी है।



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