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मंडला की अधूरी रेल कहानी — सवाल जो जवाब मांगते हैं

 


मंडला की अधूरी रेल कहानी सवाल जो जवाब मांगते हैं


मंडला - आदिवासी संस्कृति की धड़कन और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध जिला, आज भी रेलवे विस्तार के सपने को आंखों में सजाए बैठा है। सवाल यह है — क्या अब तक किसी संगठन या जनप्रतिनिधि ने महाराजपुर से मंडला तक रेलवे लाइन विस्तार के लिए ठोस कदम उठाए?


अगर उठाए हैं, तो रेल लाइन आज तक मंडला नहीं पहुंची क्यों?

अगर नहीं उठाए हैं, तो आखिर क्यों नहीं उठाए?


अंग्रेज़ों ने सौ साल पहले जो छोटी लाइन दी थी, हमने सिर्फ उसे बड़ी लाइन में बदला, लेकिन आगे का रास्ता आज तक अंधेरे में है। और यह भी हैरानी की बात है कि जहां मौजूदा समय में सिंगल पटरी को दो या तीन लाइनों में बदला जा सकता था, वहां भी ऐसा नहीं किया गया।

आखिर क्यों?

क्या विकास की रफ्तार को जानबूझकर धीमा रखा गया?

क्या मंडला की ज़रूरतों को नजरअंदाज कर दिया गया?

डिंडोरी जैसे इलाके तो अब भी रेल सेवा के लिए तरस रहे हैं। क्या मंडला का आदिवासी स्वरूप ही इसकी अनदेखी का कारण है?

क्या यहाँ के प्रतिनिधियों ने अपनी ज़िम्मेदारी निभाई?

क्या संगठनों की आवाज़ सिर्फ भाषणों और कागज़ी प्रस्तावों तक सीमित रही?

रेलवे लाइन का विस्तार सिर्फ यात्रा की सुविधा नहीं — यह मंडला के आर्थिक, शैक्षणिक और औद्योगिक विकास की जीवनरेखा है। लेकिन अफ़सोस, आज भी मंडला विकास की दौड़ में पिछड़ रहा है और ज़िम्मेदार सिर्फ चुप हैं।

मंडला के लोग अब पूछ रहे हैं:

कब टूटेगी ये चुप्पी?

कब तक रहेंगे हम रेल के इंतजार में?

कब मंडला तक पहुंचेगी विकास की पटरियां?

और सिंगल पटरी को बहु-पटरी में कब बदला जाएगा?

अब वक्त है कि प्रतिनिधि और संगठन सिर्फ वादे नहीं, ठोस कार्रवाई दिखाएं — ताकि मंडला का सपना, रेल से समृद्धि तक, हकीकत बन सके।

मंडला अब जवाब मांग रहा है… और जवाब देना होगा!

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