आखिर क्यों अतिक्रमण हटाने पर सक्षम नहीं है प्रशासन
आखिर क्यों अतिक्रमण हटाने पर सक्षम नहीं है प्रशासन
- किस वजह से नहीं हो पा रहा है अतिक्रमण क्या लक्ष्मी का दबाव है या राजनीतिक डर
- आखिर सारस क्यों नहीं कर पा रहे हैं दूध का दूध और पानी का पानी
नैनपुर - नैनपुर नगर प्रशासन अतिक्रमण हटाने में सक्षम नहीं है कई वर्षों से प्रशासन इस समस्या से जूझ रहा है लेकिन अभी तक ठोस कार्यवाही नहीं की गई है
जितना अधिक विकास हो रहा है. सड़कें चौड़ी हो रही हैं उतना ही लोग अतिक्रमण कर रास्तों को छोटा करते जा रहे हैं. सड़कों के किनारे फुटपाथ इतने छोटे हो गए हैं कि पैदल चलना मुश्किल हो गया है. कहीं भी किसी भी शहर, गांव, नगर को देखें तो सबकी हालत खराब है. अतिक्रमण करके मार्गों को इतना संकीर्ण कर दिया है कि हर वक्त जाम की स्थिति बनी रहती है. वाहन, रिक्शे, विक्रेताओं के ठेले चलना भी मुश्किल है. पैदल को तो रास्ता ही नहीं मिल पाता है. फुटपाथ पर भी बेचने का सामान लगा लेते हैं. वाहन पार्किंग और उस पर निर्माण कार्य होते रहना, समस्या और खतरा दोनों का ही जोखिम रहता है.
- जिस रास्ते गुजरो उधर ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. रेहड़ी, पटरी वालों को तो किसी का भय ही नहीं है. सार्वजनिक स्थान तो जैसे इनकी संपत्ति है. कहीं भी कुछ भी निर्माण कर लेते हैं चाहे दुकान हो या मकान. इनके प्रति प्रशासन जब सजग होकर इनके घर, दुकान या ठेले हटवाने की मुहिम छेड़ता है तो ये आंदोलन पर उतर आते हैं. तकलीफ देखने वालों को भी होती है पर ये सबकी नाक में दम किए रहते हैं. सड़कों के दोनों ओर अपना अधिकार मानकर कब्जा किए रहते हैं और पूर्ण विश्वास के साथ अपना व्यवसाय चलाते हैं. कभी-कभी तो अपनी दुकान के सामने किसी को खड़ा होने से भी रोक देते हैं, जबकि खुद अवैध तरीकों से दुकान हथियाए हुए हैं. कोई मान्यता इनके पास नहीं होती.
शहर का तो ये आलम है कि हर कदम पर खाने का सामान बेचने वालों के चलते-फिरते वाहन सड़कों को घेर लेते हैं. कई तरह की खूबसूरती और व्यंजनों के स्वाद से ग्राहक आकर्षित होकर आते हैं और सड़कें जाम कर देते हैं. बाजारों में दुकान तो आगे बढ़ाकर रखते ही हैं उतना ही सामान दुकानों के आगे भी लगा लेते हैं. एक तो जनसंख्या की अधिकता दूसरे हर जगह अतिक्रमण. वास्तविक जीवन का आनंद तो खोता जा रहा है. बड़े-बड़े अधिकारी इन रास्तों से गुजरते हैं पर कोई कुछ नहीं करता. जब कार्रवाई होती है और प्रशासन हरकत में आता है तो कितने ही लोगों का सामान फेंक दिया जाता हैं या इन पर लाठी बरसाई जाती है तब ये ही लोग दया के पात्र लगते हैं.
जहां देखा वहां घर बना लिया. बाजार वा उमरिया वा अन्य स्थानों को देखें तो सब तरफ घर ही घर नजर आते हैं. ये कितने वैध हैं कितने अवैध. अब मामला प्रकाश में आया है सब अपने पक्ष में बोल रहे हैं. एक तो अतिक्रमण है दूसरे आंदोलन. अड़ियलपन से अपनी बात पुख्ता कर रहे हैं. कानून और कोर्ट की राय मानने को भी तैयार नहीं हैं. कईयों की जमीन को लेकर भी राजनीति शुरू हो गई है. कितनी ही जमीन जो सरकार की है वहां लोगों ने अपने घर बना लिए हैं. यदि उनके घर तोड़ते हैं तो उनके साथ अन्याय होगा और यदि कोई कार्रवाई नहीं करते तो लोगों के हौसले बढ़ते नजर आते हे
नैनपुर में अतिक्रमण एक गंभीर समस्या है जिसे जल्दी से जल्दी निराकरण की जरूरत है इसके लिए प्रशासन को प्रभावी कदम उठाने चाहिए और अतिक्रमणकारीयो के संवाद स्थापित कर उन्हें अतिक्रमण हटाने के लिए प्रेरित करना चाहिए यदि वह बात नहीं मानते तो कानून का सहारा लेकर उचित कार्यवाही करना अनिवार्य है
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