चौगान मढिय़ा के चार हजार जवारें और कलश का विसर्जन रहा अद्भूत
सफेद वस्त्र और सिर में रखे हजारों जवारे देखने उमड़ा जन सैलाब
- पर्यटन स्थल रामनगर के नर्मदा तट में किए जवारे विसर्जन
- क्षेत्र समेत अन्य प्रदेशों के श्रृद्धालु भी पहुंचे जवारें दर्शन करने
- चौगान मढिय़ा के चार हजार जवारें और कलश का विसर्जन रहा अद्भूत

मंडला . जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर गौड़ राजाओं की ऐतिहासिक नगरी रामनगर के निकट चौगान की मढिय़ा है। चैत्र नवरात्र में चौगान की मढिय़ा में हर वर्ष हजारों की संख्या में जवारे बोए जाते हैं। जिनका नौ दिनों तक पूजन के बाद विसर्जन श्रृद्धा भक्ति के साथ किया गया। खास बात यह है कि आदिवासी समाज की इस मढिय़ा में एक विशेष वेशभूषा सफेद वस्त्र में ही श्रद्धालू यहां नौ दिनों तक रहकर पूजा में शामिल होते हैं, जिसके बाद सफेद वस्त्र धारण कर वे जवारे विसर्जन को जाते हैं। दृश्य देखने लायक होता है। 8 अप्रैल मंगलवार को चौगान से करीब दो किमी दूर पैदल चलकर जवारे सिर में रखे हजारों भक्त नर्मदा तट रामनगर पहुंचे। जहां श्रृद्धा भक्ति के साथ करीब चार हाजर जवारे ओर कलश का विसर्जन किया।

बताया गया कि चौगान की मढिय़ा से निकले जवारें को देखने हजारों की संख्या में भक्त जुटे। विसर्जन के दौरान लंबी कतार देखी गई। एक सी वेशभूषा में यह नजारा देखने लायक था। आदिवासी समाज के लिए आस्था का केंद्र चौगान की मढिय़ा है । यहां पर बड़ी संख्या में लोग हर वर्ष आते हैं। जिले के अलावा पड़ौसी राज्य छग व महाराष्ट्र व अन्य प्रदेश के लोग भी पूजन में शामिल रहते हैं। बताया गया कि इस वर्ष करीब चार हजार के लगभग जवारे और कलश रखे गए थे। जिले के चिखली, नकावल, झिरियाटोला, गुरार, झीना पलेहरा, मुनु, बिलगांव, चंदवारा, रामपुर, भोदर, डोंगरमंडला, इमलिया, डुंगरिया, अंजनिया एवं बंजी गांव के लोग भी चौगान मढिय़ा दर्शन के लिए पहुंचे। इसके अलावा पड़ौसी राज्य के लोग भी शामिल हुए।


दो शताब्दी से मढिय़ा की कर रहे सेवा
बताया गया कि बीते लगभग दो शताब्दी से चौगान मढिय़ा में परते परिवार ही इस शक्तिपीठ में पूजा करा रहे हैं। गोंड जनजाति के साथ गैर जाति के भक्तों में इन्हें पीठ का गुरु मानते है। सभी सफेद वस्त्रो को पहने होने के कारण इसे व्हाइट लेंड से भी संबोधित किया जाता हैं। गौरतलब हैं कि इस शक्तिपीठ में बहुत कम लोगों को मालूम है कि यहां जिन शक्तिमाता की पूजा की जाती उन्हें मां रहवेदनी कहा जाता हैं।

सीढ़ी के ऊपर दीप प्रज्जवलित
पूजा पद्धति में मढिय़ा में लोहे की ऊंची सीढ़ी के ऊपरी सिरे में पंडा सनकाड़ी से वहां रखे दो दीपको को जब सीढ़ी से चढ़कर प्रज्वलित करता हैं तो हजारों की संख्या में पहुचे श्रद्धालूओ की आस्था उमड़ पड़ती हैं। इसके बाद मां रहवेदनी की आरती के स्वरों से शक्ति स्थल गूंज उठता हैं। आरती के समापन के साथ ही नगाड़ो की धुन में बड़ी संख्या में महिलाये पुरुषों को भाव मे झूमने लगते है। मान्यता हैं कि यहां लोगो की मनोकामनाएं पूरी होने पर मनोकामना कलश की स्थापना की जाती है। शारदेय नवरात्र की अपेक्षा चैत्र नवरात्र में कलशों की संख्या अधिक रहती है। चैत्र नवरात्र में 4 हजार से अधिक जवारों और कलशों की स्थापना की गई। यहां यह भी आस्था हैं कि मानसिक रूप से पीडि़त लोगों को लोहे की सीढ़ी से लोहे की जंजीर से बांध दिया जाता हैं और यह भी जाना गया कि पीडि़त इस जंजीर से बांधे जाने के बाद पराशक्ति पीड़ा से यहां मुक्त हो जाता है।
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