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सुख समृध्दि के लिए आज भी होलिका की आग से जलाते है घरों के चूल्हे



सुख समृध्दि के लिए आज भी होलिका की आग से जलाते है घरों के चूल्हे

  • परिवार की सुख, समृद्धि के लिए प्राचीन परंपरा का लोग कर रहे निर्वाहन

मंडला . हर एक भारतीय त्यौहार कोई न कोई संदेश देता है, साथ ही समाज में सद्कार्य करने की प्रेरणा देता है। त्यौहारों से समृद्ध हमारे देश में अनेकों तीज त्यौहार मनाते है। उनमें से एक पांच दिवसीय रंगो का प्रमुख त्योहार होली है। यह त्यौहार होलिका दहन के प्रारंभ होकर रंग पंचमी तक मनाया जाता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होने वाला होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत सहित अनेकों संदेश तो देता ही है, साथ ही अनेकों परंपराओं को पोषित करता है। उन्हीं परंपराओं में से एक है होली की आग से अपने घरों का चूल्हा जलाना।



बताया गया कि आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला सहित आज भी यह परंपरा प्रचलित है जहां होलिका दहन की आग से लोग अपने घरों का चूल्हा जलाते हैं। संसाधनों के अभाव और लकड़ी कंडों की प्रचूर मात्रा के चलते पूर्व में यह आग वर्ष भर चूल्हे में बनी रहती थी और प्रतिवर्ष लोग इस चूल्हे की आग का नवीनीकरण करते थे। अब भले ही बहुतायत घरों में चूल्हों की जगह गैस चूल्हे ने ले लिया हो, लेकिन आज भी ग्रामीण अंचल में लोग होलिका दहन के बाद सुबह उसकी आग से ही चूल्हा जलाकर इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। नगरीय क्षेत्र के जिन घरों में चूल्हा के स्थान पर गैस चूल्हा है वे होली की आग से गैस चूल्हा जलाकर इस अतिप्राचीन परंपरा का निर्वाह आज भी करते हैं जिससे उनके परिवार में सुख समृद्धि बनी रहे।

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