देवकर परिवार ने लायी थी मां तुलजा:भवानी
बुरहानपुर.....
बुरहानपुर तुलजा माता का इतिहास काफी प्राचीन है वैसे तो तुलजा भवानी महाराष्ट्र की कुल स्वामिनी के रूप में भी पूजी जाती है और बुरहानपुर में विशेष तौर पर गुजराती मोढ वणिक समाज की कुल स्वामिनी के रूप में पूजी जाती है, वैसे यदि हम बात करें तो तुलजापुर में स्थित मां तुलजा भवानी की ओरिजिनल मूर्ति नहीं बल्कि इसके ओरिजिनल मूर्ति बुरहानपुर में स्थित है जिसका काफी लंबा इतिहास है हम इस इतिहास के बारे में पहले चर्चा करेंगे वर्ष 1659 में मुगल साम्राज्य में शिवाजी के राज्य में स्थित एक शक्तिपीठ तुलजा भवानी मंदिर स्थित है सेनापति अफजल खान अपने अभियान के तहत मंदिर पर कब्जा करने और शिवाजी पर आक्रमण करने के लिए दृढ़ संकल्पित था तभी शिवाजी महाराज को गुप्तचरों से यह सूचना मिल चुकी थी कि उन पर आक्रमण होना है वही अफजल खान शिवाजी पर आक्रमण करने और भवानी माता के मंदिर को तोड़ने के लिए योजन बनाकर अपने साथ सैनिक लेकर निकल चुका था, छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने चुनिंदा गुप्तचर को कहा की मंदिर की प्राचीन (ओरिजनल) देवी प्रतिमा को गुप्त मार्ग पर स्थापित करें और गुजरात की ओर सभी लोग प्रस्थान करें तभी वहां के महा पंडित ने एक प्रतीकात्मक मिट्टी की प्रतिमा तैयार कर वहां रख दी और ओरिजिनल मूर्ति वहां से लेकर गुप्त रास्ते से निकल गए महापंडित अपने साथ गुप्तचर का जत्था लेकर मूर्ति को बचाते हुए साम्राज्य से बाहर निकल जाते हैं और गुजरात के मोढेरा शहर पहुंचते हैं मोढेरा पहुंचते समय काफी बाधाओ का भी सामना करना पड़ा जैसे मौसम की मार जंगली जानवरों का हमला और अन्य बाधाओ को दूर करते हुए मोढेरा पहुंचे थे ,वही महापंडित और शिवाजी महाराज के सैनिकों ने माता सहित एक गुजराती मोड़ के व्यापारी के यहां विश्राम किया वहीं दूसरी और अफजल खान ने मंदिर की और कुच किया और वहां मंदिर में मां तुलजा भवानी की प्रतीकात्मक मिट्टी की मूर्ति को तोड़ दिया और उसे लगा कि मैंने मूर्ति तोड़ने में कामयाब हो गया जबकि उसे यहां मालूम ही नहीं था कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने उस मूर्ति को एक ऐसी जगह सुरक्षित किया है जो उसे तोड़ नहीं सकता था उधर व्यापारी द्वारा अपने घर से निकाल कर उस मूर्ति को एक कुएं में छुपाया गया जिसे शंकराचार्य जी ने एक समय (ओरिजनल मूर्ति) तुलजापुर में स्थापित किया था, वहीं दूसरी और शिवाजी महाराज ने अफजल खान का वध कर दिया और और छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने किले में शालिग्राम के पत्थर मंगवाकर उससे एक तुलजा भवानी की मूर्ति की स्थापना की और जब मराठा साम्राज्य में विस्तार हुआ तो तुलजापुर में माता की इसी मूर्ति को स्थापित किया गया जो आज हम तुलजापुर में तुलजा भवानी के रूप में दर्शन होते है और जब गुजरात में औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने प्रारंभ किया तब मोढ वणिक समाज के कई लोग वहां से निकलने लगे तभी "जानको जी भाई देवकर" ने इस मूर्ति को जो कुएं में रखी थी उसे निकालकर अपने साथ छुपाते हुए गुप्त रास्तों से होते हुए बुरहानपुर तक पहुंचे थे, बुरहानपुर पहुंचने के लिए वह उज्जैन ,इंदौर मालवा के कई क्षेत्रों से होते हुए भृगनपुर यानी आज के बुरहानपुर पहुंचे थे ,माता की यह मूर्ति स्कंद पुराण में स्थापित ताप्ती महात्मय में वर्णित गुप्तेश्वर महादेव के मंदिर महाजनापेठ में गुप्त मार्ग से यहां तक लाया गया, और गुप्तेश्वर महादेव के मंदिर के सामने ही एक भवन में रखा गया और स्थापित किया गया जो आज मंदिर है ,और आज भी मराठा पंडित की 11वीं पीढ़ी रविन्द्र भगत उसकी देखभाल कर रहै है पूजा अर्चना कर आज भी माता के सेवा कर रहै है जिसमें मुख्य रूप से पंडित रविन्द्र शंकरराव भगत महाराज के तौर पर इस प्राचीन मूर्ति की सेवा कर रहे हैं वैसे तो प्राचीन किवदंती है कि गुजराती मोढ़ वणिक समाज की कुलदेवी तो मोढ़ेश्वरी माता है किंतु गुजराती मोढ वणिक समाज के जानको जी भाई देवकर ने से जब अपनी पीठ पर रखकर बड़े ही कठिन परिस्थितियों में लेकर बुरहानपुर पहुंचे थे तब से लेकर आज तक समूचे समाज यानि गुजराती मोढ वणिक समाज की कुलदेवी तुलजा भवानी के रूप में मानी जाती है यही नहीं जब-जब कोई शुभ कार्य करते हैं तो माता को पालकी में बैठाकर अपने-अपने घरों पर ले जाया जाता है और और देर रात में खप्पर खेल, जोगवा भी गाया जाता है तथा दिनभर उपवास करने के बाद रात्रि में माता के सामने बैठकर उपवास छोडे जाता है इस प्रकार खप्पर खेल एक विशेष प्रकार की चादर लेकर उसे जलाया जाता है किंतु वह नहीं जलती तब यह माना जाता है कि माता- परिवार पर प्रसन्न है इस प्रकार बुरहानपुर की तुलजा भवानी माता प्राचीन और मुख्य प्रतिमा के रूप में आज भी महाजनपेठ में स्थित है आज करीब दसवीं पीढ़ी में स्वर्गीय मोहनलाल देवकर परिवार के पांच पुत्रो में 4 आज भी भारत भूषण देवकर,अनिल देवकर,शरद देवकर,गोपाल देवकर आज भी समय-समय पर सेवा करते हैं तो वही गुजराती मोढ वणिक समाज के कार्यकारी अध्यक्ष एवं पदाधिकारी भी पहुंचकर माता की सेवा अर्चना करते हैं और इसी माता के आशीर्वाद से आज पूरा समाज संपन्न हो रहा है ।
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