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भगवान स्वामी नारायण जी को 111किलो का छप्पन भोग और 111 किलो जैविक गुड़ का भोग


बुरहानपुर सीलमपुर स्थित प्राचीन स्वामीनारायण मंदिर में सूरत और जलगांव खानदेश से संतों का आने का सिलसिला लगातार जारी है जिसके चलते आज निज मंदिर में लक्ष्मी नारायण देव का दूध केसर के जल के साथ साथ अभिषेक किया वही राज्योपचार के साथ गुलाब की पंखुड़ियों से भी अभिषेक किया गया, जलगांव से पधारे शास्त्री संत पी पी स्वामी ने सभी भक्तों को आशीर्वचन दिए और सभी भक्तों को बुरहानपुर की तरह भगवान





 स्वामीनारायण ने पूजा की हुई मूर्ति जलगांव के भक्तों को भी दी है जो कि 200 वर्ष प्राचीन है उस मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा और दिव्य 20 करोड़ की लागत से बने हुआ मंदिर का उद्घाटन में सभी भक्तों को आमंत्रित किया । भगवान स्वामीनारायण और लक्ष्मी नारायण देव के लिए छप्पन भोग के यजमान बने रतिलाल गणुजी सुगन्धी, जिन्होंने 111 किलो मिष्ठान्न का छप्पन भोग लक्ष्मीनारायण देव, हरिकृष्ण महाराज को लगाया तो

वही भगवान को प्रिय जैविक गुड़ की भेलियो का 111 किलो का भोग लगाया ।




भगवान स्वामीनारायण के मंदिर में व्यास पीठ पर विराजित शास्त्री राजेंद्र प्रसाद दास जी ने कहा कि जिस तरह मनुष्य को जीवनयापन के लिए से रोटी कपड़ा और मकान की आवश्यकता होती है

उसी प्रकार माता-पिता , गुरु और भगवान का आशीर्वाद की भी जरूरत होती है , हमारे जीवन मे किसी भी क्षेत्र में कार्य करने के लिए हर कदम पर संघर्ष करना पड़ता है,संघर्ष के बिना जीवन संभव नही है,संत महात्मा भी लोगो के लिए संघर्ष ही करते रहे है,हम भी जीवन मे ऐसे कोई काम करो कि हमारा जीवन सफल हो जाये,


परिश्रम से ही अच्छा फल मिलता है,उसका मुख्य कारण है धर्म, परोपकार ,यदि हम पर भगवान ,साधु-संतों की कृपा होगी तो कठिन से कठिन कार्य भी सफल हो जाते है

जो दूसरों का भला करता है तो भगवान पहले उसका ही भला करते है,जो काम दवा से नही वह दुआ से होता है,ऐसी दुआ साधू संतो की कुटिया,मंदिरों में मिलती है,हमारे सभी कार्यो को केवल भगवान जी पूरा करते है,केवल भगवान पर विश्वास होना चाहिए।

हमारे भाग्य को केवल विधाता ही जानता है,

पुरुषोत्तम मास की कथा में मेंघावी ऋषि की कन्या ने भगवान को पाने के लिए 9000 वर्षो तक तप किया ,किन्तु आज केवल 100 वर्षो का जीवन है उसमें भी हमारे कार्य पूर्ण नही कर लेते है उसे केवल तप और अनुष्ठान से ही पुर्ण किया जा सकता है।

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