A description of my image rashtriya news ढोंग की जिंदगी जीने से अच्छा है कि ढंग की जिंदगी जियों-पंडित प्रदीप मिश्रा - Rashtriya News Khabre Desh Prdesh Ki

Header Ads

ढोंग की जिंदगी जीने से अच्छा है कि ढंग की जिंदगी जियों-पंडित प्रदीप मिश्रा


बुरहानपुर। लोभी, भोगी, कामी, रोगी और ढोंगी इन पांच को कभी चैन की नींद नहीं आती। ढोंग की जिंदगी जीने से अच्छा है कि ढंग की जिंदगी जी लो। श्री शिव महापुराण कहती है कि आप तो शिव के द्वार पर दस्तक दे दो, बस! फिर शिव जी की मर्जी, वो आपको कितनी देर तक अपनी शरण में स्थान देता है। आपकी आराधना और अर्चना के लिए अपने मंदिर में कितना समय रहने दे। जितना समय आप शिव आराधना में देते हो उसका ढिंढोरा पीटना और पूजा-अर्चना का व्याख्यान करके खुद को सबसे बड़ा शिव भक्त बताने वाले कितने सुखी और चैन की नींद सो पाते है, वे खुद ही बता सकते है।

यह बात श्री अश्वत्थामा शिव महापुराण कथा के तृतीय दिवस पंडित प्रदीप मिश्रा ने कही। उन्होंने कहा कि प्रभु भक्ति में लीन ग्रहस्थ हो या साधु, सन्यासी केवल संतोषी व्यक्ति ही अल्मस्त होकर चैन की नींद सोता है।

पंडित प्रदीप मिश्रा ने गांव और शहरी सोच को विस्तृत रूप से रखते हुए कथा संयोजक एवं पूर्व मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस (दीदी) से कहा कि आप जनप्रतिनिधि होने के नाते भलीभांति जानती है कि गांव और शहर की सोच और भक्ति भाव में कितना अंतर है। जैसे गांव में भिखारी को भी सन्यासी मानकर भिक्षा मिल जाती है तो शहर में कुछ लोग तपस्वी संत सन्यासी को भी महत्व नहीं देते। जिससे धर्म और साधु सन्यासी के प्रति विचारों का शहरी संस्कृति में ऐसा नजरियां ही वास्तु-दोष काल सर्प दोष, पितृ दोष के फंदे में फंसने का कारण बन रहे है। उन्होंने कहा कि जो शिव भक्त अपने घर से जल लेकर जाता और अपने मन की बात शिव जी के समक्ष रखता है, तो उसकी एकाग्रता और भाव के आधार पर ही भोला उसकी समस्या को हल करता है। श्री मिश्रा ने वास्तु-दोष काल सर्प दोष, पितृ दोष बताने वालों से पूछा कि इन सबका बाप कौन है। क्या श्री शिव महापुराण के वाचन और सच्ची शिव भक्ति से यह दोष स्वमेव दूर नहीं भाग जाते?

पंडित प्रदीप मिश्रा ने गुरुनानक देव जी के दिए उपदेश का वर्णन कर लंगर सेवा की सराहना की। संत रैदास जी के गुणों का बखान करते हुए मीरा की भक्ति को भी समझाया। उन्होंने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति में कभी वर्णभेद, जाति भेद की व्यवस्था ही नहीं रही। सनातन संस्कृति में तो वेद, पुराण, कथा को चौपाई (4 वर्णांे) पर रखकर ही पढ़ा जाता था और है। स्वार्थी व आतताई ही धर्म का विभाजन करके अपने स्वार्थ सिद्ध करते रहे।

शिवपुराण कहती है, जिसने भजन कीर्तन किया वो सबसे धनी व्यक्ति हैं। बाकी तो समाज में धन और सम्पत्ति का मापदण्ड ही महत्व रखता है। आप मेहनत करते रहो, कर्म ही प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेंगा। आपकी प्रगति और मेहनत ही सफलता का कारण होती हैं। जब सफलता मिलेगी तो वह ईर्ष्या का कारण बनेंगी। जिससे हमें घबराने की जरूरत नहीं। आपके पास जब यश, वैभव, धन, सम्पत्ति होगी तो लोग आपकी पुछ परख करेंगे किन्तु भोलेनाथ तो केवल भजन, कीर्तन और आपके भाव भक्ति का भूखा है। उसे तो केवल एक लोटा जल और बेलपत्रि चढ़ा दो तो आपने बेलपत्रि को किस भाव से स्पर्श किया वह खुद आपके मन की बात को समझ लेता है।

अश्वत्थामा जी की कथा को आगे बढ़ाते हुए श्री प्रदीप मिश्रा ने कहा कि जब वह शिव जी से वरदान पाकर गुरू द्रोणाचार्य से मिले तो पिता अपने पुत्र को राजा से मिलाने ले आया। इस प्रसंग पर सीख देते हुए पंडिप प्रदीप मिश्रा ने कहा कि बुरहानपुर वासियों आप कभी अपने बच्चों को ऐसे दोस्त के पास मत ले जाना जो व्यसनी हो, गाली देता हो, बुराईयों का पिंड हो उसको अपने बच्चे से मत मिलवाना। अपने बच्चों को सनातन, संस्कारी और अच्छी आदतों का धनी बनाओ ताकि वो आपके भविष्य का सहारा बन सके।

कथा के शुरूआत में संत रविदास जी के चित्र पर माल्यार्पण पंडित प्रदीप मिश्रा, कथा संयोजक श्रीमती अर्चना चिटनिस (दीदी) एवं अध्यक्ष माधवबिहारी अग्रवाल ने माल्यार्पण कर नमन किया।

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.