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मध्य-प्रदेश को "मद्य-प्रदेश" होने से बचाइए

 



 01 नवंबर का दिन उन सब लोगों के लिए गर्व करने का मौका है जिनका जन्म मध्यप्रदेश में हुआ है या जिनकी कर्मभूमि मध्यप्रदेश है या जिनका मध्यप्रदेश से किसी भी प्रकार का लगाव है. लेकिन बीते वक़्त में इस राज्य को जिस प्रकार "मद्य-प्रदेश" में तब्दील करने की कोशिश हुई है, जाने-अनजाने, वो तस्वीरें जब एक-एक कर के सामने आती हैं, तो सरकार-प्रायोजित प्रगति, विकास और उपलब्धियों के तमाम आंकड़े और दावे थोथे दिखाई देने लगते हैं.


 कौन भूल सकता है पिछले दो-तीन सालों में जहरीली शराब का सेवन करने से उज्जैन, मुरैना सहित अन्य गरीब, पिछड़े और आदिवासी-बहुल इलाकों में किस तरह सैंकड़ों निरीह लोगों की जान चली गईं. सरकार ने फौरी तौर पर कतिपय स्थानीय कर्मचारियों को निलंबित कर दिया और कुछ को उक्त स्थानों से बेदखल कर दिया! उक्त कांडों की जांच के लिए तथाकथित उच्च-स्तर की समितियां भी बना दी. विश्वास किया जाना चाहिए कि उक्त जांच समितियों ने सूक्ष्मता से पड़ताल कर अपनी रिपोर्ट सरकार को दे दी होगी और इस तरह के कांडों के गुनाहगारों के नाम छांट लिए होंगे. उनके विरुद्ध कोर्ट में चालान भी पेश कर दिए गए होंगे. और यह भी कि जांचकर्ताओं ने वो उपाय भी सुझा दिए होंगे, ताकि भविष्य में उक्त मर्मांतक कांडों की पुनरावृत्ति न हो.


  बहरहाल, इस सत्य को नहीं झुठलाया जा सकता है कि एक इंसान में किसी भी नशे की लत पड़ने की उतनी कमजोरियां अथवा मजबूरियां नहीं होतीं, जितनी शासन चलाने वालों की भूख होती है टैक्स वसूलने की. नहीं तो क्या कारण है कि इस राज्य की सरकार नशे के कारोबार से ही सर्वाधिक धन इकट्ठा कर रही है, एक नंबर में. इस गोरखधंधे से मिलने वाली दो नंबर की अकूत कमाई, समानांतर सरकार जैसी स्याह हकीकतों से भी लोग बख़ूबी परिचित हैं. 


 कुछेक दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने पैतृक गांव जैत (बुदनी विधानसभा, जिला सीहोर) में अपने ही लोगों की समस्याओं का समाधान कर रहे थे. उसी दौरान एक वृद्ध और लाचार ग्रामवासी आई और गुहार लगाई कि उसके पति को फेरी लगाकर गुटखा-पाउच इत्यादि बेचने की छूट दी जाए. इस पर शिवराज जी का क्रुद्ध रूप देखने लायक था, उन्होंने मंच से ही अप्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें नशा करने वालों और नशा बेचने वालों से सख्त चिढ़ है और वो लोगों को बर्बाद नहीं होने देंगे. 


 मगर, प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि बीते एक वर्ष में मध्यप्रदेश की प्रमुख सड़कों के इर्द-गिर्द खुले आम दारू के अड्डे क्यों खुल गए? जिन लंबी-लंबी सड़कों पर एक भी सार्वजनिक शौचालय नहीं मिलता, वहां छोटे-छोटे अन्तराल पर प्राय: चौबीस घंटे मयखाने क्यों मिल जाते हैं? जिन रास्तों पर कोसों-कोसों तक पीने को निःशुल्क साफ़ पानी नहीं मिल पाता, वहां लोगबाग लाइन लगाकर जेब से 'धीमा' ज़हर पीने के लिए क्यों प्रोत्साहित किए जाते हैं? स्कूल, औषधालय और आंगनबाड़ी भवन की बजाय बड़े-बड़े और चमचमाते अहाते खोलने देने के पीछे आखिर ऐसी मजबूरी क्या है?


 कई राज्यों की सीमाओं से घिरे होने के कारण मध्यप्रदेश में नशे की भीषण आवक होती है. दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में दारू सस्ती होने के कारण मध्य-प्रदेश में बड़ी मात्रा में ट्रक से अवैध शराब आती है. फिर यहां से गुजरात में तस्करी कर भेजी जाती है, क्योंकि वहां नशाबंदी है. यही हाल ड्रग्स (कोकेन, चरस, गांजे, हेरोइन) का भी है, जिसने समूची युवा पीढ़ी को ही गिरफ्त में ले लिया है.



राजगढ जिले में पुलिस का प्रयास इस और दिखा लेकिन जहर बनाने वाले की जड़ फिर भी कही न कही से सिंचित होती रहने के चलते यह कारोबार खत्म नहीं हुआ साल दो साल या चुनाव के समय यह कार्यवाही देखने को मिलती हे।


वही राजगढ़ जिला राजस्थान सीमा से लगा हुआ भोजपुर सेमली गांव से राजस्थान सीमा की बॉर्डर शुरू होती है, ऐसे में ड्रग्स अफीम, गांजा चरस आदि का अवैध धंधा चल रहा लेकिन आहिस्ता आहिस्ता से यह जिले के दो मुखिया कलेक्टर ओर एसपी अभी तक इस सीमा का जायजा और यह सीमा में बसने वाले लोगो की तस्दीक करने में स्थानीय पुलिस भी जनभुजकर कही न कही अनदेखा करती हैं।


इसलिए प्रदेश में राजगढ़ जिला भी मध्य प्रदेश में मद्य निषेध होने से कोई गंभीरता लेकर जड़ तक पहुंचने का हाल ही में सीनियर पुलिस अधीक्षक अवधेश कुमार गोस्वामी जरूर लगे लेकिन राजनीतिक दल कही न कही उनकी कार्यप्रणाली को अभी तक समझ नही सके।


 काश! ऐसा हो सके कि शासन स्तर पर किसी भी किस्म के नशे की उन्मुक्त खरीद-फरोख्त को सहन नहीं किया जाए. कम से कम 01 नवंबर को तो दारू, गुटखा-पाउच इत्यादि बेचने पर पूर्णतः प्रतिबंध हो! शायद "मध्यप्रदेश गान" की तभी थोड़ी-बहुत सार्थकता रह पाएगी...

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