जैन समाज के लोगो विधान में भक्ति आरधान नृत्य के साथ महाआर्घ्य समर्पित कर रहे है। खुद करना होगा अपना काम, दूसरों के भरोसे नहीं पहुंच सकते मंजिल तक-मुनिश्री विनय सागर,10 से 25 अक्टूबर तक श्री शांतिनाथ महामंडल विधान एवं विश्वशांति महायज्ञ कार्यक्रम आयोजित होगा।
ग्वालियर-: हमे दूसरों के भरोसे नहीं रहना है अपना कार्य खुद करना है। दूसरों के भरोसे रहने वाला कभी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता है। धन और बाहरी सामग्री कभी दुःखों से छुटकारा नहीं दिला सकती फिर भी हम इनको एकत्रित करने में जुटे रहते है। लगता हमे परमात्मा की वाणी पर भी विश्वास नहीं करते है। संसार सागर से पार होने के लिए पाप का प्रत्याख्यान जरूरी है। यह बात श्रमण मुनिश्री विनय सागर महाराज ने साधनामय बर्षयोग समिति एवं मुख्य संयोजक मनोज जैन, जैन कालेज के संयुक्त तत्वावधान में आज शनिवार को सोलह दिवसीय शांतिनाथ महामंडल विधान में माधवगंज स्थित चातुर्मास स्थल अशियाना भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।
मुनिश्री ने कहा कि शब्दों से कभी आत्मा का समाधान नहीं हो सकता बस अपना काम निकाल सकते है। स्वयं को सजाने - संवारने में व्यस्त रहने वालों के लिए सभी तरह के दुःख उपलब्ध होते है। शरीर मेकअप के लिए नहीं कर्मो को क्षय करने के लिए मिला है। मेकअप का मतलब जो है उसे छुपाना और जो नहीं है उसे दिखाना होता है। ऐसा करके हम मिथ्यात्व में उलझ रहे है। धर्म को अधर्म कहना या अधर्म को धर्म कहना मिथ्यात्व है। जो नहीं है उसे दिखाने का प्रयास करने वाला सभी प्रकार के दुःखों को उपलब्ध रहता है।
*शांतिनाथ विधान में भगवान जिनेंद्र का हुआ अभिषेक, पूजन में अर्घ्य समर्पित किए*
जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि श्रमण मुनिश्री विनय सागर जी महाराज के सानिध्य में 16 दिवसीय श्री 1008 शांतिनाथ महामंडल विधान में रोग, शोक, भय, पीड़ा, आदिव्याधि व विश्व में सुख शांति और समृद्धि के लिए श्री 1008 शांतिनाथ महामंडल विधान में सुबह ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने मंत्रो के साथ श्रावकों ने भगवान जिनेंद्र का कलशों से अभिषेक किया। वही भगवान की शांतिधारा की गई। उसके पश्चात शांतिनाथ मंडल विधान में श्रद्धालुओं ने भगवान जिनेंद्र के समक्ष श्रीफल, चावल, बादाम, लोंग सहित अष्ट द्रव्य के महाअर्घ्य चढ़ाये। सगीतमय भजनों पर झूमते हुए श्रद्धालुओं ने श्रीजी की दीपकों से महा आरती की।
*हम कुछ पाने के चक्कर में मिले हुए का लाभ भी नहीं लेते*
मुनिश्री ने कहा कि हम कुछ पाने के चक्कर में जो मिला हुआ है उसका भी लाभ नहीं ले पाते है। हम उसके पीछे भागते है जो पास में नहीं है। जो मिला हुआ है उसकी कीमत समझ नहीं आती है। जिंदगी में जो मिला हुआ वह तो नहीं खोना चाहिए। मानव जीवन का मौल पहचानना होगा। इसे गंवाने पर तिर्यंच गति, इसमें लाभ जोड़ने पर देव गति और इसमें कर्म चढ़ाने पर नरक गति मिलती है। हमारा लक्ष्य इसमें लाभ जोड़ना होना चाहिए न कि कर्म बढ़ाकर मूल पूंजी को भी गंवा दे। दान-पुण्य करने से आत्मा लाभ में रहेगी
कोई टिप्पणी नहीं