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बुरहानपुर में रस्सी का कारोबार लग-भग उतना ही प्राचीन है जितना कि यह शहर, लेकिन इस कारोबार को मध्य प्रदेश शासन ने बुरहानपुर के विशेष कारोबार का दर्जा 1962 ईस्वी में नेहरू काकर समिति बनाकर प्रदान किया है

बुरहानपुर में रस्सी का कारोबार लग-भग उतना ही प्राचीन है जितना कि यह शहर, लेकिन इस कारोबार को मध्य प्रदेश शासन ने बुरहानपुर के विशेष कारोबार का दर्जा 1962 ईस्वी में नेहरू काकर समिति बनाकर प्रदान किया है। *काकर* रस्सी बनाने वाले समुदाय को कहा जाता है यह समुदाय 1857 ईस्वी के लगभग मैसूर से बुरहानपुर आकर बसा था इस समाज का बुरहानपुरी संस्कृति पर विशेष प्रभाव रहा है इस समाज द्वारा मोहर्रम में बनाया जाने वाला ताज़िया प्रदेश का सबसे ऊंचा ताज़िया हुआ करता था। 1962 ईस्वी में शासन द्वारा गठित नेहरू काकर समिति बुरहानपुर के इतिहास में रस्सी शिल्पियों को एक संगठित व्यापार से बांधने के लिए बनाई जाने वाली पहली समिति थी। इस समिति के मुख्य कर्ता-धर्ता श्री हैदर शेख एवं श्री ताज मोहम्मद थे जो अब स्वर्गवासी हैं किंतु शेख़ यासीन शेख़ उमर जैसे बुज़ुर्ग बुरहानपुरी रस्सी के कारोबार की दास्तान सुनाने के लिए अभी सलामत हैं।1962 में गठित समिति द्वारा रस्सी शिल्पियों को रस्सी बनाने के लिए कच्चा माल(नारियल कूच,कातर एवं कपास सूत)शासन द्वारा उपलब्ध कराया जाता था एवं तैयार माल भी शासन द्वारा ही खरीद लिया जाता था। इस प्रकार समिति ने बिखरे हुए रस्सी शिल्पियों को एक एक जुट करने में महत्वपूर्ण पूर्ण एवं मजबूत रस्सी की भूमिका निभाई जिससे रस्सी निर्माण के क्षेत्र में एक परिवर्तन यह भी आया कि पहले जो शिल्पी *मूझ (घांस की रस्सी)* बना रहे थे अब वे तैयार रस्सी बेचने की चिंता से मुक्त होकर नारियल और सूत की रस्सियां बनाने लगे थे। यह कारोबार बहुत तेज़ी से आगे बढ़ा और पूंजी पतियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने लगा धीरे धीरे श्री अमीर खां जौहरी जैसे शहर के सुप्रसिद्ध व्यापारीयों ने रस्सी के इस कारोबार को नए आयाम देने शुरू किए।समय की मांग एवं कच्चे माल की आसान उपलब्धता ने इस कारोबार को भी प्रभावित किया तो कच्चा माल महाराष्ट्र के मुंबई एवं गुजरात के सूरत से बुरहानपुर आने लगा, मुम्बई से समुद्री जहाज़ों के पुराने मोटे रस्से और सुरत से यार्न सिल्क एवं नायलोन बुरहानपुर आने लगा जिससे बुरहानपुर के रस्सी शिल्पी विभिन्न प्रकार की रसिया बनाने लगे,जिनमें *डंडा, जुपना, जोत, मोर्खी, मुस्का, नाथ, गेठा एवं मोड़वा (लगाम)* मुख्य हैं। वैसे तो ये सभी बुरहानपुर में बनने वाली राशियों के वही प्रकार हैं जो *मूझ सूत एवं कातर* के समय भी बनाए जाते थे अब अंतर केवल कच्चे माल का है। आज बुरहानपुर मध्यप्रदेश का सबसे ज़्यादा रस्सी उत्पादन करने वाला शहर बन गया है। जोकि *25 टन* से अधिक रस्सी हर दिन तैयार कर रहा है,यानी एक किलोग्राम रस्सी की औसतन लम्बाई यदि 50 फीट भी मान ली जाए तो भी इस का एक सिरा बुरहानपुर में छोड़ दिया जाए तो दूसरा सिरा राजभवन भोपाल तक आसानी से पहुंच जाएगा। दो से ढाई हज़ार लोग इस कारोबार से जुड़े हुए हैं जिनमें *40% महिलाएं* हैं। *1000 से अधिक चर्खे एवं लगभग 400 मशीनें* शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी रफ़्तार से कार्य कर रही हैं जिनमें *आलमगंज आज़ाद नगर एवं गणपति नाका* प्रमुख छेत्र हैं। बुरहानपुर में तैयार होने वाली रस्सी न केवल संपूर्ण मध्य प्रदेश बल्कि महाराष्ट्र गुजरात राजस्थान एवं देश के अन्य क्षेत्रों में भी पहुंच रही है, महाराष्ट्र बुरहानपुरी रस्सी का सबसे बड़ा ग्राहक है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यहां रस्सी का कारोबार खूब फल-फूल रहा है किंतु रस्सी से बनने वाली विभिन्न कलाकृतियों जैसे *चारपाई, झूला,सोफा,पापोश,जाली, कृषि एवं पशु श्रृंगार सामग्री व अन्य साज-सज्जा सामग्री* तैयार करने वाले कलाकारों की स्थिति दयनीय है, इस क्षेत्र मैं सुधार एवं उन्नति स्थापित करने हेतु इन कलाकारों को शासकीय सहायता एवं संरक्षण की आवश्यकता है। 🙏🌹😊🌹🙏 क़मरूद्दीन फ़लक-

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