नर्मदा परिक्रमा से होती मण्डला की पहचान
नर्मदा परिक्रमा से होती मण्डला की पहचान
- देश-विदेश के लोग आकर कर रहे उत्तरवाहिनी माँ नर्मदा परिक्रमा
- परिक्रमा को लेकर प्रशासन की उपेक्षा समझ से परे
मण्डला। महिष्मती उत्तरवाहिनी माँ नर्मदा परिक्रमा का दूसरा चरण कल 20 अप्रैल को संपन्न हुआ हालांकि इस दूसरे आयोजन में पहले आयोजन की तरह हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल नहीं थे फिर भी लगभग 500 लोगों ने इस दो दिवसीय उत्तरवाहिनी नर्मदा परिक्रमा में अपनी सहभागिता दर्शायी। इस द्वितीय आयोजन में हालांकि स्थानीय भक्तों की संख्या कम थी लेकिन मण्डला जिले के बाहर और दूसरे प्रदेशों के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुये। उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात के साथ-साथ दक्षिण के प्रदेश केरल से भी श्रद्धालु इस परिक्रमा में शामिल रहे कुछ परिक्रमावासी तो परिक्रमा में शामिल होने हवाई यात्रा कर जबलपुर पहुंचे और वहां से टैक्सी के माध्यम से मण्डला आकर उन्होंने परिक्रमा में भाग लिया।
सुबह 6:00 बजे प्रारंभ हुई परिक्रमा
- 19 अप्रैल दिन शनिवार को प्रात: 6:00 बजे संकल्प पूजा के साथ परिक्रमा प्रारंभ हुई व्यास नारायण मंदिर में संकल्प के साथ माँ नर्मदा का कलश एवं माँ नर्मदा की पालकी नर्मदा तट पर पहुंची जहां पर माँ रेवा की महाआरती नर्मदा भक्तों ने सामूहिक रूप से की। आरती पूजन के उपरांत तट पार कर परिक्रमा यात्रा महाराजपुर संगम पहुंची जहां पर परिक्रमावासियों का पंजीयन की प्रक्रिया पूर्ण कराई गई इसके बाद अंदर के रास्ते से परिक्रमा आगे बढ़ी।
- चित्रगुप्त कायस्थ सभा ने कराया बाल भाेग
- ज्वालाजी मंदिर परिसर में चित्रगुप्त कायस्थ सभा द्वारा परिक्रमावासियों के लिये बाल भाेग की व्यवस्था की गई थी समाज की महिलायें पोहा, जलेबी एवं शीतल पेय से भरी हुई प्लेटें लेकर परिक्रमावासियों को ससम्मान भेंट कर रही थी एवं उनका स्वागत पुष्पवर्षा कर करते हुये अपने आपको धन्य महसूस करती नजर आई।
आगे बढ़ती हुई परिक्रमा दादा धनीराम जी के आश्रम पहुंची जहां दर्शन उपरांत नर्मदा तट से परिक्रमा गुजरते हुये मानादेई होते हुये सुरंगदेवरी के अंदर से नर्मदा तट से माँ नर्मदा का दर्शन करते हुये सिलपुरा स्थित कोठी घाट आश्रम पहुंची जहां पर सूर्यकुण्ड रेवा सेवा समिति द्वारा आश्रम संचालकों के सहयोग से दोपहर के भोजन की व्यवस्था की गई थी स्वादिष्ट भोजन से परिक्रमावासियों का मन तो संतुष्ट हुआ ही शरीर की थकान भी दूर हो गई भोजन के बाद भजन करते हुये परिक्रमावासी भाव-विभोर नजर आये यहां दोपहर को थोड़े विश्राम के उपरांत नर्मदा तट से ही आगे बढ़ते हुये सनकुही पहुंची परिक्रमा और फिर भैंसादाह होते हुये घाघा से गुजरते हुये घाघी घाट पर परिक्रमावासी पहुंचे जहां रात्रि विश्राम निर्धारित किया गया था।
नर्मदा तट पर हुआ रात्रि विश्राम
घाघी घाट के अपि्रतम सौन्दर्य एवं तीनों ओर से प्रवाहित नर्मदा जल ने सभी परिक्रमावासियों का मन मोह लिया इस स्थान पर रात्रि विश्राम की कल्पना से ही सभी परिक्रमावासी उत्साहित नजर आये तट पर ही लोगों ने अपना डेरा जमाया। संध्या समय माँ नर्मदा की महाआरती की गई और परिक्रमावासियों ने भोजन ग्रहण किया। भोजन उपरांत भजन-कीर्तन के बाद लोग विश्राम करने चले गये। सुबह 3:00 से ही जाग कर परिक्रमावासियों ने नित्यकि्रया के उपरांत स्नान किया और फिर तट पर माँ नर्मदा की आरती की और तट पारकर बबैहा पहुंचे जहां बाल भोग के बाद आगे की परिक्रमा प्रारंभ हुई।
प्रशासन ने नहीं किया सहयोग
घाघी घाट रात्रि विश्राम को लेकर जिला प्रशासन से स्नान एवं प्रसाधन की सुविधा उपलब्ध कराने निवेदन किया गया था लेकिन सिर्फ नगरपालिका प्रशासन द्वारा एक मोबाईल टायलेट उपलब्ध कराया गया लगभग 500 परिक्रमावासियों के लिये आयोजन समिति ने अलग-अलग महिला-पुरूषों के उपयोग हेतु अस्थाई टायलेट बनवाये नर्मदा तट पर स्नान की कोई व्यवस्था न होती देख समिति द्वारा पम्पों के माध्यम से पानी ऊपर लाकर श्रद्धालुओं के नहाने की व्यवस्था महिला एवं पुरूषों की अलग-अलग की गई थी।
दूसरे दिन 20 अप्रैल को परिक्रमा जिलहरी घाट के सामने से पगदण्डी रास्ते से माँ नर्मदा के किनारे-किनारे सहस्त्रधारा आश्रम पहुंची जहां से देवदरा होते हुये नेहरू स्मारक एवं जेल घाट, सिंघवाहिनी मंदिर के दर्शन करते हुये व्यास नारायण मंदिर किले घाट परिक्रमावासी पहुंचे। भगवान व्यास नारायण पर जल अर्पण कर परिक्रमावासियों ने अपनी परिक्रमा पूर्ण की और फिर यहां भव्य आरती की गई। आरती के उपरांत भोग की व्यवस्था की गई थी और फिर बाहर से आये हुये परिक्रमावासियों को समिति द्वारा प्रशस्ति पत्र भी यादगार स्वरूप भेंट किये गये।
पूरे परिक्रमा मार्ग में नर्मदा भक्तों के द्वारा दी गई शीतल पेय, ठण्डे पानी, फल, छाछ, बेल का शरबद, मिष्ठान एवं अन्य सामग्री ने परिक्रमावासियों को कहीं भी अकेले होने का एहसास नहीं कराया।
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