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नदियों का बहुत सारा जल पहुंचने के बाद भी समुद्र कभी तृप्त नहीं होता श्री महाराज जी

 



नदियों का बहुत सारा जल पहुंचने के बाद भी समुद्र कभी तृप्त नहीं होता श्री महाराज जी 

  • संतोष रूपी जल से अपनी आत्मा को करें पवित्र

  • चल रहा पर्युषण पर्व, बह रही ज्ञान की बहार 


नैनपुर . मुनि श्री समता सागरजी महाराज ने बताया कि पर्युषण पर्व के चौथे दिन को दशलक्षणों में शौच धर्म कहा जाता है। शौच धर्म पवित्रता का प्रतीक है। यह पवित्रता शुचिता संतोष के माध्यम से आती है। व्यक्ति को जैसे-जैसे लाभ होता है वैसे-वैसे उसका लोभ बढ़ता जाता है और यही लोभ एक दिन इच्छा और इच्छा से तृष्णा में बदल जाता है, जिस तृष्णा की पूर्ति कर पाना कभी भी संभव नहीं है। आकाश में फैले हुए बादलों की तरह मन की अनन्त कामनायें हमारी आत्मा पर छाई हुई हैं। कामनाओं के उन समस्त बादलों को तितर-बितर करने के लिए यह शुचिता का पावन पर्व पवन बनकर के आया है। नीतिकारों ने कहा है कि, नदियों का बहुत सारा जल पहुंचने के बाद भी समुद्र कभी तृप्त नहीं होता। कोटि-कोटि शों को भस्म करने के बाद भी श्मशान कभी तृप्त नहीं होता, निरन्तर भोजन करने के बाद भी जैसे पेट कभी भरता नहीं है वैसे ही यह तृष्णा का गड्?डा है जो कितना भी भरा जाय पर कभी भरता ही नहीं है।


मुनि श्री समता सागरजी महाराज ने बताया कि तृष्णा की खाई खून भरी पर रिक्त रही वह रिक्त रहीं तब फिल लोभ के स्वभाव को हम समझे और आज आत्म-शुद्धि के इस पावन पर्व पर शुचिता के संदेश को जीवन में अपनाने का प्रयास करें। आज का यह पावन पर्व शुद्धता, पवित्रता का प्रतीक है, जिसमें हमारे लिए शुद्धता सिर्फ शरीर की नहीं करनी है। शरीर की शुद्धता तो हमने कई-कई बार कर ली है लेकिन धर्म का संबंध तो आत्मा की शुद्धता से, आत्मा की पवित्रता से है।

सभी धर्म ग्रंथ और धर्मगुरु कहते हैं कि संतोष रूपी जल से अपनी आत्मा को पवित्र करो, पावन बनाओ। यह शुचिता का पावन पर्व आप सबके जीवन में वह संतोष लाये जो संतोष जड़ पदार्थों की आसक्ति को घटाकर आत्मिक सुख शांति प्राप्त कराता है।

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