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प्रतिबंध के बाद भी बेखौफ हो रहा मत्स्याखेट, जिम्मेदार खामोश

प्रतिबंध के बाद भी बेखौफ हो रहा मत्स्याखेट, जिम्मेदार खामोश

मत्स्य विभाग की कार्यप्रणाली पर उठ रहे सवाल, कार्रवाई से क्यों बचते हैं अफसर



मण्डला -- बताया गया कि 16 जून से 15 अगस्त तक मछलियों के आखेट पर प्रशासन द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया था। बावजूद इसके निरंतर मछलियों का शिकार जारी है। इतना ही नहीं खुलेआम व्यापारी मछलियों का विक्रय भी करते नजर आ रहे, लेकिन इस पर कार्यवाही करने में विभाग पूरी तरह से नाकाम दिखाई दे रहा है। बाजार समेत मुख्यालय के आसपास भारी तादाद में मछलियां विक्रय की जा रही है। कार्रवाई के नाम पर विभागीय अमला केवल औपचारिकता का ही निर्वहन करते नजर आ रहा है। यहां प्रतिबंध के आदेश की धज्जियां उड़ रही है। यहां मत्स्य विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लग हुआ है। जानकारी अनुसार प्रजनन काल में मछलियों का उत्पादन प्रभावित ना हो इसके लिए शासन स्तर से मछली के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया है। इस प्रतिबंधात्मक आदेश के पालन के लिए जिम्मेदार मछली पालन विभाग को मत्स्याखेट रोकने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
50 किमी दूर कार्रवाई लेकिन पांच किमी के अंदर न ही जांच पड़ताल न ही कार्रवाई

शासन, प्रशासन के बनाए नियम सिर्फ आम लोगों पर ही लागू होते है. इन नियमों की धज्जियां उड़ाना सरकार के नुमाइंदों का काम है। खानापूर्ति कर वाहवाही लूटना अधिकारियों, कर्मचारियों की फितरत बन गई है। हम बात कर रहे आदिवासी बाहुल्य जिला
मंडला के मत्स्य विभाग की, जहां पदस्थ अधिकारी, कर्मचारी सिर्फ दिखावे के लिए कार्रवाई
की औपचारिकता निभाते है। जिला मुख्यालय के बाजार में खुलेआम मछली बाजार संचालित हो रहा है, वहीं पांच किमी दूर सहस्त्रधारा में रोजाना कई छिटल मछलियां मछुआरे पकड़‌कर बेचने के साथ बाहर भी भेज रहे है, लेकिन मत्स्य विभाग की नजर यहां नहीं है, विभाग
मंडला जिले के नदी, नाले, जलाशय और तालाब से जमकर मत्स्याग्रेट किया आ रहा है। मछुआरों ने जाल फैला रखे है। नर्मदा में डोंगी से मछलियो की तलाश की जा रही है लेकिन मछली पालन विभाग और पुलिस प्रशासन द्वारा कार्रवाई नहीं की जा रही है। जिले भर में मत्स्याखेट और मछली विक्रय जमकर जारी है। खुले आम जिला मुख्यालय समेत आसपास के क्षेत्रों में इसका नाजारा देखने को मिल रहा है। लेकिन मछली विक्रय करने वाली की भी मजबूरी है कि उनके पास इस दो माह अपने भरण पोषण के लिए दूरुसरा कोई कार्य नहीं रहता है।
जिसके कारण मजबूरी में भी इनको मछली विक्रय करनी पड़ती है। 

आखेट रोकने कोई
खास कदम नहीं

मत्स्य विभाग ने 16 जून से 15 अगस्त तक के लिए मछलियो के परिवहन, विक्रय और आसोट पर
मुख्यालय से 50 किमी दूर जाकर बाजारों में कार्रवाई कर अपने कार्रवाई के रिकार्ड की
शोभा बढ़ा रहे है। जब महावीर न्यूज 29 की टीम पर्यटन स्थल सहस्त्रधारा पहुंची तो मछुआरे नर्मदा नदी से मछलियां पकड़कर चौपहिया वाहन में रख रहे थे, मौके से भी कई किलो मछलिया इनके द्वारा बेची गई। तत्काल मत्स्य विभाग के एक अधिकारी को फोन लगाया गया, लेकिन अधिकारी ने फोन ही नहीं उठाया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विभाग की नाक के नीचे सब कुछ चल रहा है, लेकिन उन्हें बनाए गए नियमों पर कार्रवाई करने की फुर्सत ही नहीं है।

 जिले के नदी, नाले व तालाब में मछुआरे मत्स्याखेट कर रहे है। बारिश के दौरान नगर से सटे नर्मदा तट के अलावा छोटे जलाशय में भी मलयाखेट चल रहा है। नर्मदा नदी में खुलेआम मत्स्यासखेट किया जा रहा है लेकिन विभाग द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जिला मुख्यालय के समीप पर्यटन स्थल सहस्वधारा के नर्मदा नदी में मछुआरे डेरा डाले हुए है। डोगियों के सहारे मतलियों को पकड़कर पानी से बाहर निकाला जा रहा है। नर्मदा से बड़ी और छोटी मछलियों का आखेट बेरोकटोक जारी है। विभाग द्वारा आखेट को रोकने के लिए खास कदम नहीं उठा रहा है।

कार्यवाही के नाम पर विभाग की खानापूर्ति

जिले में प्रतिबंध काल में हजारों किलो मछली नर्मदा नदी, बंजर नदी, तालाब समेत अन्य जलाशयों से पकड़ी जाती है। जिसे जिले समेत जिले के बाहर चौपहिया वाहनों में बर्फ में सहज कर ले जाया जाता है, इस बात की जानकारी मत्स्य विभाग को रहती है, लेकिन मछली बेचने वाली और विभाग की मिली भगत से प्रतिवर्ष हजारों किलो मछलियों का व्यापार अवैध रूप से कर दिया जाता है, और कार्रवाई के नाम पर खाना पूर्ति कर इतिश्री कर दी जाती है। इस प्रतिबंध काल में लाखों का व्यापार मछली के व्यापारी करते है।

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