अधिकांश जगहों पर चार पांच साल पहले बन चुके इन शौचालय कौड़ी काम नहीं आ रहे हैं।
ओपीडी हो चुके ग्राम पंचायतों में लाखों रुपए खर्च कर,सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण कराया जा रहा है। अभी भी पंचायतों में धड़ाधड़ नए सार्वजनिक शौचालय बनाए जा रहे हैं मगर अधिकांश जगहों पर साल भर पहले बन चुके इन शौचालय कौड़ी काम नहीं आ रहे हैं।
सार्वजनिक शौचालय बनाने लाखों-करोड़ों खर्च पर उपयोग नहीं होने से लटक रहे ताले
ओपीडी हो चुके ग्राम पंचायतों में लाखों रुपए खर्च कर सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण कराया जा रहा है। अभी भी पंचायतों में धड़ाधड़ नए सार्वजनिक शौचालय बनाए जा रहे हैं मगर अधिकांश जगहों पर सालभर पहले बन चुके इन शौचालय कौड़ी काम नहीं आ रहे हैं।
सार्वजनिक शौचालय बनाने लाखों-करोड़ों खर्च पर उपयोग नहीं होने से लटक रहे ताले
खकनार ब्लाक//स्थिति यह है कि अधिकतर पंचायतों में निर्माण पूरा हो जाने के बाद भी कहीं चार पांच साल से तो कहीं साल भर से ज्यादा का समय हो चुका है,लेकिन उपयोग तक नहीं शुरु हो पाया है। अधिकांश शौचालयों में ताला लटक रहा है। ग्राम पंचायतों द्वारा सार्वजनिक शौचालयों का संचालन करने कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा क्योंकि सरपंच-सचिव खुद ये तर्क दे रहे है ,कि गांव में पहले से ही सभी घरों में शौचालय बन चुके हैं ,इसीलिए वे लोग तो पैसे देकर इसका उपयोग करने से रहे। गांवों में शहरों की तरह बाहरी व्यक्तियों का भी आना भी नहीं होता जिससे इस्तेमाल होता। जिसके चलते संचालन कैसे करेंगे। ऐसे में पंचायतों ने निर्माण होने के बाद उन्हें लावारिश की तरह अपने हाल में छोड़ दिया गया है। ऐसे में शासन के लाखों-करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं,लेकिन फायदा लोगों को नहीं मिल पा रहा। बता दें, पिछले साल 2020-21 से स्वच्छ भारत मिशन के तहत ओडीएफ हो चुके गांवों में सार्वजनिक स्थानों पर लोगों को प्रसाधन की व्यवस्था सुलभ रुप से उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सामुदायिक शौचालयों का निर्माण कराना शुरु किया गया है। हर साल करीब 200 पंचायतों में निर्माण कराया जा रहा है। इस साल भी करीब 200 पंचायतों में निर्माण चालू हैं मगर विडंबना है कि जिन पंचायतों में इसका निर्माण पूर्ण हो चुका है वहां इसका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है। अधिकांश जगहों पर ताला लटका मिल रहा है।
एक शौचालय बनाने में तीन से पांच लाख तक खर्च
सामुदायिक शौचालय के लिए राशि निर्माण पंचायत की आबादी के अनुसार जारी हो रही है। जिसमें तीन लाख रुपए से लेकर पांच लाख रुपए तक एक सामुदायिक शौचालय के लिए राशि दी जा रही है। जिसमें तीन योजना के अभिशरण के तहत निर्माण हो रहा है। इसमें स्वच्छ भारत मिशन, मनरेगा और १५वें दिन तीनों की राशि शामिल है। अधिकांश जगहों पर पंचायत ही निर्माण एजेंसी है। ऐसे में पंचायत निर्माण तो करा रही है पर उपयोग करने कोई ध्यान नहीं दे रही।
अधिकांश जगह गुणवत्ताहीन कार्य में तीन से पांच लाख रुपए लागत होने के बावजूद अधिकांश जगहों पर शौचालय का निर्माण मानकों को ताक पर रखकर किया गया है जिससे उपयोग शुरु होने से पहले ही जर्जर होने की स्थिति में पहुंच गए हैं। पंचायत के सरपंच-सचिवों के द्वारा निर्माण में जमकर वारा-न्यारा किया गया है और जैसे पाए हैं वैसे निर्माण कार्य करवा दिया गया है।
संचालन का फंसा है पेंच
पूरे मामले में सामुदायिक शौचालय के शुरु होने के बाद संचालन का पेंच फंसा हुआ है क्योंकि संचालन के लिए किसी तरह का फंड नहीं मिलने वाला। पंचायत को ही स्वीपर से लेकर सफाई कर्मी और देखरेख का भार आएगा। स्वच्छता समिति, महिला समूह या कर्मचारी नियुक्त करना पड़ेगा जिसको हर माह वेतन देना होगा। पंचायत इसको लेकर हाथ खींच रही है।
घरों-घर शौचालय फिर कौन करेगा उपयोग
खकनार ब्लॉक के ग्राम पंचायत नावरा में सामुदायिक शौचालय आंगनवाड़ी के पास गया है, जिसमें ताला लटका हुआ है। पंचायत सचिव का इस और ध्यान नहीं, इसी तरह ग्राम पंचायत ग्राम डाभियाखेड़ा के मुख्य मार्ग में सामुदायिक शौचालय में ताला लटका हुआ है।
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