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झिरन्या संगत द्वारा 21 दिसंबर से 26 दिसंबर तक मनाया जायेगा शहादत दिवस

झिरन्या संगत द्वारा 21 दिसंबर से 26 दिसंबर तक मनाया जायेगा शहादत दिवस
प्रतिवर्ष 26 दिसंबर को छोटे साहिबजादो की याद में वीर बालदिवस के रूप में याद करने मनाने की घोषणा से युवाओं ने माना प्रधान मंत्री जी का आभार 
वजीर खां ने छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह बाबा फतेह सिंह तथा माता गुजरी जी को पूस महीने की तेज सर्द रातों में तकलीफ देने के लिए ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया। यह चारों ओर से खुला और उंचा था। इस ठंडे बुर्ज से ही माता गुजरी जी ने छोटे साहिबजादों को लगातार तीन दिन धर्म की रक्षा के लिए सीस न झुकाने और धर्म न बदलने का पाठ पढ़ाया था। यही शिक्षा देकर माता गुजरी जी साहिबजादों को नवाब वजीर खान की कचहरी में भेजती रहीं। 7 व 9 वर्ष से भी कम आयु के साहिबजादों ने न तो नवाब वजीर खां के आगे शीश झुकाया और न ही धर्म बदला। इससे गुस्साए वजीर खान ने 26 दिसंबर, 1705 को दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवा दिया था। जब छोटे साहिबजादों की कुर्बानी की सूचना माता गुजरी जी को ठंडे बुर्ज में मिली तो उन्होंने भी शरीर त्याग दिया।
श्री गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादों में दो अन्य चमकौर की जंग में शहीद हुए थे। गुरु गोबिद ने अपने दो पुत्रों को स्वयं आशीर्वाद देकर जंग में भेजा था। चमकौर की जंग में 40 सिखों ने हजारों की मुगल फौज से लड़ते हुए शहादत प्राप्त की थी। 6 दिसंबर, 1705 को हुई इस जंग में बाबा अजीत सिंह (17) व बाबा जुझार सिंह (14) ने धर्म के लिए बलिदान दिया था। 
सिक्ख समुदाय के युवाओं द्वारा जरूरतमंदों की सेवा और गुरु साहिब द्वारा दी गई कुर्बानियों के बारे में छोटे बच्चो विद्यार्थियों को अवगत कराया
कही कंबल वितरण किया तो कही दूध सिमरन भाटिया , लवीश भाटिया ,मोंटी भाटिया ,डिप्टी भाटिया ,सोनू भाटिया अनमोल भाटिया, मनन भाटिया ,जसराज भाटिया गुरजीत भाटिया आदि सेवा हेतु मौजूद थे

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