घृणा, द्वेष, छुआछूत, ऊंचनीच, जातिवाद और भेदभाव के षड्यंत्रों से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं
घृणा, द्वेष, छुआछूत, ऊंचनीच, जातिवाद और भेदभाव के षड्यंत्रों से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं
--- जन्म आधारित जाति की छुआछुत व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी, इसलिए भारतीय होने पर गर्व करें
--- राष्ट्रहित में भेदभाव, छुआछूत, ऊंचनीच,घृणा, द्वेष और जातिवाद को तत्काल समाप्त किया जाए
आगरा
प्राचीन भारत मे कभी छुआछुत रहा ही नहीं, और ना ही कभी जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी। वैदिक काल से स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था। अपनी योग्यता के अनुसार कोई भी पद तक पहुंच सकता था और सबको शिक्षा का अधिकार था।
इस सन्दर्भ में डॉ उमेश शर्मा ने प्राप्त जानकारी के अनुसार कहा कि घृणा, द्वेष, छुआछूत, ऊंचनीच, जातिवाद और भेदभाव के षड्यंत्रों से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं। जन्म आधारित जाति की छुआछुत व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी, इसलिए भारतीय होने पर गर्व करें। केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़कर 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं। फिर शुरू होता है, मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100 - 1750 तक है। इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह - जगह क्रूर लुटेरे आक्रांतओं और आक्रमणकारियो का समय रहा और कुछ स्थानों पर उनका शासन भी चला और इसी मध्यकाल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें भी शुरू हुई।1800 -1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से भेदभाव, छुआ छूत, ऊंच नीच,छुआछूत और जातिवाद पुरे जोर से शुरू हुआ। जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया। जो एक अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब "कास्ट ऑफ़ माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।जबकि वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे। वो बदले जा सकते थे। वो ही जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं। लेकिन सत्ता सुख पाने के लिए स्वार्थी नेताओं ने अपने स्वार्थ में ऐसा नहीं किया।और जन्म आधारित जाति की छुआछुत व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए जारी रखी गयी। इसलिए राष्ट्रहित में और न्यायहित में भारत की उन्नति और तरक्की के लिए मेरी भागवत जी, मोदीजी और योगीजी से अपील हैं कि जातिवादी घृणा, द्वेष, भेदभाव और जातिवाद को तत्काल समाप्त किया जाए। क्युकी ज़बतक इसका पक्का इलाज नहीं होगा तबतक आपका का, सब का साथ, सब का विकास का सपना साकार नहीं हो सकता। इसलिए राष्ट्रहित में जातिवादी घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्रों से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं और जो स्वार्थी नेता सोशल मीडिया के माध्यमो से लोगों को भड़का कर दलित अत्याचारों को बढ़ावा दे रहें हैं, उन पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाये।
श्री शर्मा ने प्राप्त जानकारी के अनुसार आगे बताया कि प्राचीन भारत मे कभी छुआछुत रहा ही नहीं और वैदिक काल से स्पष्ट है, कोई किसी का शोषण नहीं करता था। क्युकी एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से सम्राट शांतनु ने विवाह किया और उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा ली और उसी सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए। जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे। वहीं, महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए। वो गुरुकुल चलाते थे। विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है। वो एक दासी के पुत्र थे। हस्तिनापुर के महामंत्री बने। उनकी लिखी हुई विदुर नीति राजनीति का एक महाग्रन्थ है। और भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया। श्री कृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे। उनके भाई बलराम खेती करते थे। हमेशा हल साथ रखते थे, यादव क्षत्रिय रहे हैं। कई प्रान्तों पर शासन किया और आज़ भी श्री कृष्ण सबके पूजनीय हैं। गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया। श्री राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे। उनके पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे। तो ये हो गयी वैदिक काल की बात,इससे स्पष्ट होता है की कोई किसी का शोषण और भेदभाव नहीं करता था। सबको शिक्षा का अधिकार था। अपनी योग्यता के अनुसार कोई भी पद तक पहुंच सकता था। अब प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे। नन्द वंश की शुरुआत महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये। उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर लम्बे समय तक राज रहा। जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई थी। जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया था। 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा। फिर गुप्त वंश का राज हुआ। जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा। अंत में मराठों का उदय हुआ और बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया। चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया।अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये। मीरा बाई जी जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे। लेकिन हमारे स्वार्थी नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका खूब राजनीतिकरण किया। जबकि वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे। वो बदले जा सकते थे। लेकिन सत्ता सुख पाने के लिए ऐसा नहीं किया और जन्म आधारित जाति की छुआछुत व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए जारी रखी गयी। इसलिए राष्ट्रहित में घृणा, द्वेष, छुआछूत, ऊंचनीच, जातिवाद और भेदभाव के षड्यंत्रों से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं और भारतीय होने पर गर्व करें।
कोई टिप्पणी नहीं