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बोरगाव में जिला कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष हर्षित सिंह ठाकुर बिरसा मुंडा जी की प्रतिमा के अनावरण कार्यक्रम में समिलित हुए


बुरहानपुर | आज बोरगाव में जिला कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष हर्षित सिंह ठाकुर जी प्रतिमा का अनावरण एवं आदिवासी रैली में सम्मिलित होकर सभी आदिवासी भाइयो बहनों को शुभकामनाए प्रेषित की. 


श्री ठाकुर ने कहा कि बिरसा मुंडा जी का आदिवासी वर्ग के उतथान और देश हित में बड़ा योगदान रहा है, जल, जंगल और जमीन के रखवाले आदिवासी भाइयों के प्ररेनता युवाओं के पूजनीय है. श्री सिंह ने मुंडा के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बिरसा मुंडा का जन्म मुंडा जनजाति के गरीब परिवार में पिता सुगना मुंडा और माता करमी मुंडा के सुपुत्र रूप में 15 नवम्बर 1875 को झारखण्ड के खुटी जिले के उलीहातु गाँव में हुआ था। साल्गा गाँव में प्रारम्भिक पढाई के बाद इन्होंने चाईबासा जी0ई0एल0 चार्च विद्यालय से आगे की शिक्षा ग्रहण की। 


1858-94 का सरदारी आंदोलन बिरसा मुंडा के उलगुलान का आधार बना, जो भूमिज-सरदारों के नेतृत्व में लड़ा गया था। 1894 में सरदारी लड़ाई मजबूत नेतृत्व की कमी के कारण सफल नहीं हुआ, जिसके बाद आदिवासी बिरसा मुंडा के विद्रोह में शामिल हो गए।


1 अक्टूबर 1894 को बिरसा मुंडा ने सभी मुंडाओं को एकत्र कर अंग्रेजों से लगान (कर) माफी के लिये आन्दोलन किया, जिसे 'मुंडा विद्रोह' या 'उलगुलान' कहा जाता है। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और जिससे उन्होंने अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग "धरती आबा"के नाम से पुकारा और पूजा करते थे। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी।


1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।


उनका यह संघर्ष हमें देशभक्ति और समाज के लिए कार्यों व हित के आवाज उठाने की प्रेरणा देता है।

।। एक तीर एक कमान आदिवासी एक समान।।

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