हिंदू जागरण मंच ने जीजामाता जयंती मनाई
बुरहानपुर । हिंदू जागरण मंच ने गुरुवार को जीजामाता जयंती के उपलक्ष पर शहर के शिकारपुरा थाने के समक्ष जिजामाता प्रतिमा पर माल्यार्पण कर जीजामाता जयंती मनाई। मंच के जिलाध्यक्ष ठा प्रियांक सिंह ने कहा किसी जननी ने अगर शूरवीर को जन्म दिया है तो जरुर वह जननी विशेष होगी। छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे शूरवीर को जन्म देने वाली जननी को ‘राजमाता जीजाआई’ के नाम से जाना जाता है। कहते हैं हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है। यह महज एक कहावत हो सकती है लेकिन जब-जब छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता, कार्यकुशलता, रण-चातुर्य, कूटनीति और महिला सम्मान की बात होगी तो मां जीजाबाई की चर्चा बिना पूरी नहीं होगी इसलिए प्रत्येक माताओं बहनों को जीजामाता के विचारों से प्रेरणा लेकर अपने बच्चों का पालन पोषण जीजामाता जैसे करना चाहिए। माल्यार्पण करते समय आशीष शर्मा, भूषण पाठक, देवा मराठे, भूषण सूर्यवंशी, विनोद लौंढे, गोपाल भाई, देवी सिंह बारेला, गोलू महाजन आदि उपस्थित रहे।
जीजाआई का जीवन
जीजाबाई (जिजाऊ) का जन्म 12 जनवरी 1598 ई. में महाराष्ट्र के बुलढाणा में हुआ। इनके पिता लखुजी जाधव सिंदखेड नामक गाव के राजा हुआ करते थे उन्होंने जीजाबाई का नाम उस वक्त ‘जिजाऊ’ रखा था कहते हैं की जीजाबाई अपने पिता के पास बहुत कम रही और उनकी बहुत ही छोटी उम्र में शादी कर दी गई थी उस समय बचपन में ही विवाह करवाने की परंपरा थी।
जीजाबाई ने शिवनेरी के दुर्ग में दिया शिवाजी को जन्म
शिवाजी महाराज के पिता शाहजी ने अपने बच्चों एंव जीजाबाई की रक्षा के लिए उन्हें शिवनेरी के दुर्ग में रखा, क्योंकि उस वक्त शाहजी को अनेक शत्रुओं का भय था यहाँ शिवनेरी के दुर्ग में ही शिवाजी का जन्म हुआ और बताया जाता है की शिवाजी के जन्म के वक्त शाहजी जीजाबाई के पास नहीं थे। शिवाजी के जन्म के बाद शाहजी को मुस्तफाखाँ ने बंदी बना लिया था उसके 12 वर्ष बाद शाहजी और शिवाजी की भेंट हुई इस बीच जीजाबाई और शाहजी का संपर्क दुबारा हुआ।
शाहजी की मृत्यु पर सती होने की कोशिश
शाहजी हमेशा अपने कार्यों में जीजाबाई की मदद लिया करते थे जीजाबाई के बड़े पुत्र का नाम संभाजी था बताया जाता है की संभाजी और शाहजी को अफजलखान के साथ हुए युद्ध में मारे गये थे। शाहजी की मृत्यु के बाद जीजाबाई ने पति के साथ सती होने की कोशिश की थी पर शिवाजी ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया था। शिवाजी अपनी माँ को अपनी मित्र, मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत मानते थे यही कारण है की शिवाजी बहुत कम उम्र में ही समाज एंव अपने कर्तव्यों को समझ गये थे अपनी माँ की मार्गदिशा में उन्होंने हिंदवी साम्राज्य स्थापित करने की शुरुआत छोटी उम्र में ही कर दी थी।
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