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रेतीली राजनीति का सच

 


मध्यप्रदेश में अमन है चैन है ,क्योंकि हर तरफ राम राज है. कोई किसी की न सुन रहा है और न कोई किसी से कुछ कह रहा है. मध्यप्रदेश की नदियों से रेत का अवैध उत्खनन जैसा पहले होता  था वैसे ही आज भी जारी है .सत्तापक्ष हो या विपक्ष सब मिल-बांटकर अपनी जेबें भरने में लगे हैं .खासतौर पर विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता डॉ गोविंद सिंह के गृह क्षेत्र लहार [भिंड ] रेत के अवैध उत्खनन का अघोषित केंद्र बना हुआ है .

अवैध उत्खनन की हकीकत आपको भोपाल या ग्वालियर में बैठकर नजर नहीं आ सकती .इसे देखना है तो आप भिंड जिले के इस सीमावर्ती इलाके की किसी भी सड़क पर खड़े हो जाएँ.आपको हर तरफ ,हर सड़क पर रेत से लदे असंख्य डम्पर नजर आ जायेंगे .सड़कों पर आपको जांच नाके लगे नजर आएंगे किन्तु वहां अवैध और वैध रेत से भरे ट्रकों की जांच के लिए कोई नजर नहीं आएगा ,क्योंकि पुलिस,प्रशासन और खनिज महकमा इस रेतीले कारोबार के सामने खड़े होने के बजाय इसके साथ रहने में ज्यादा आसानी समझते हैं .

संयोग से मेरे गृह ग्राम  का रास्ता लहार विधानसभा क्षेत्र से होकर ही गुजरता है. एक लम्बे अरसे बाद मुझे इस इलाके के भ्रमण   का अवसर मिला. मैंने देखा कि लहार ही नहीं बल्कि लहार को जोड़ने के लिए पिछले कुछ वर्षों में सड़कों का जाल बिछाया गया है. लेकिन इन सड़कों से यात्री परिवहन कम रेत का परिवहन ज्यादा होता है. जाहिर ये सड़कें यात्री वाहनों के लिए नहीं रेत परिवहन के लिए बनवाई गयी हैं .इन सड़कों पर आपको रेत से लदे भीमकाय ट्रक अनवरत आते-जाते नजर आ जायेंगे. 

लहार इलाके में रेत ने  कृषि  के समानांतर जो अर्थ व्यवस्था  खड़ी की है उसकी नींव में रेत ही रेत है. ऐसा कोई  गांव नहीं जहाँ का रसूखदार आदमी इस अवैध उत्खनन से बाबस्ता न हो. रेत के अवैध उत्खनन ने इस इलाके में लोगों की समृद्ध में चार नहीं बल्कि आठ-दस चाँद लगा दिए हैं .यहां सत्ता परिवर्तन के साथ केवल रेत कारोबारियों के नाम और चेहरे बदलते हैं और कुछ नहीं .रेत की राजनीति दिखावे की राजनीति है. सत्तारूढ़ भाजपा  हो या विपक्षी कांग्रेस सभी दलों के छोटे-बड़े नेता रेत के इस अवैध कारोबार में संलग्न है, लेकिन यदि आप सबूत मांगेंगे तो हम जैसे आम लोग तो दूर ईडी,सीबीआई जैसी शीर्ष संस्थाएं भी शायद ये काम आसानी से न कर पाएं .

अवैध उत्खनन के खिलाफ जब-तब मोर्चा खोला जाता है. नदी बचाओ यात्राएं भी निकाली जातीं हैं ,किन्तु इन सब कोशिशों  से न नदियाँ बचतीं है और न रेत. बचाये जाते हैं तो केवल रेत माफिया .ये रेत माफिया इतने शक्तिशाली हैं कि इनके सामने पूरी सरकार असहाय है .सरकार इन्हें रोकना तो दूर ,इन्हें छेड़ भी नहीं सकती .किसी भी दल की सरकार हो नदियों की रेत से अवैध रूप से निकाली जाने वाली रेत के सहारे ही चलती है.भिंड,मुरैना,ग्वालियर और दतिया जिलें में समूची  राजनीति का केंद्र ही अवैध उत्खनन है .इसे रोकने के लिए कोई ' माई का लाल ' पैदा नहीं हुआ है .

अवैध उत्खनन कर निकाली गयी रेत से लदे भीमकाय डम्पर और ट्रकों का एक भी मालिक अराजनीतिक व्यक्ति नहीं है. हो भी नहीं सकता.आम आदमी में इतनी कूबत कहाँ ? जिन इलाकों में शाम पांच बजे के बाद से यात्री बसें उपलब्ध नहीं हैं  वहां चौबीस घंटे रेत से लदे ट्रक चलते देखे जा सकते हैं .जाहिर है कि यदि ये ट्रक न हों तो यहां के नेता भिखारी हो जाएँ .यहां की नदियाँ ही इन नेताओं की माई और बाप हैं .ग्वालियर-चंबल से निकलने वाली नदियों की रेत आसपास के शहरों के अलावा सीमावर्ती उत्तर प्रदेश तक की मांग को पूरा करती है .जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ रहा है वैसे-वैसे रेत की मांग बढ़ रही है और इसी अनुपात में रेत का अवैध उत्खनन बढ़ रहा है,क्योंकि वैध उत्खनन से मांग और आपूर्ति में संतुलन बनाया ही नहीं जा सकता. 

देश और प्रदेश का भूतल सड़क परिवहन मंत्रालय नहीं जानता होगा की मध्यप्रदेश के ग्वालियर -चंबल इलाके में अरबों रूपये खर्च कर बनाई गयी सड़कों में से अधिकाँश पर रेत से भरे ट्रक ही चलते हैं,यात्री वाहन न के बराबर हैं .इन भीमकाय ट्रकों ने अंचल की तमाम सड़कों को  खा लिया है. अंतरिम सड़कों पर मीलों तक सौ-सौ मीटर के गढ्ढे बन गए हैं क्योंकि जो सड़कें  केवल आठ-दस टन माल ढो सकतीं हैं उनके ऊपर से पचास और सौ टन से भरे रेत के ट्रक निकल रहे हैं आप यकीन मानिये कि इलाके की अधिकाँश सड़कें नागलोक में विलीन हो गयीं हैं और जो शेष बचीं हैं उनका कोई संरक्षक नहीं है. 

लहार अंचल की सड़कों के किनात्रे आपको रेत के भण्डार खुले में पड़े मिल जायेंगे. जब रेत का उत्खनन सम्भव नहीं होता तब इन रेत अड्डों से रेत की आपूर्ति की जाती है ,वैसे अब तकनीक और दुस्साहस इतना समृद्ध है कि मूसलाधार वर्षा में भी रेत का कारोबार नहीं रुकता .रेत माफिया के पास मंहगी से मंहगी मशीने और  तकनीक मौजूद हैं .सरकार के पास इस अनुपात में रेत माफिया से लोहा लेने का न साहस है और न साधन .कोई नया कलेक्टर या पुलिस अधिकारी इस काम को रोकने का प्रयास करता भी है तो या तो उसे राजनीतिक दबाब में हटा दिया जाता है या फिर वो खुद इस कारोबार का हिस्सा बन जाता है .

चूंकि इस अंचल की तमाम नदियों से इस लेखक का सीधा और आत्मीय रिश्ता है इसलिए इन नदियों के शोषण के खिलाफ जब भी मौक़ा मिलता है ,लिखता हूँ .'रेत के प्रेत' नाम से मैंने कुछ वर्षों पहले तब लिखा था जब रेत माफिया ने भिंड के एक पत्रकार की जान ले ली थी ,लेकिन सब बातें अतीत के गर्त में समा गयीं .न रेत का अवैध  उत्खनन रुका और न नदियों के बचाव में कोई आगे आया .जैसा कि मैंने जिक्र किया कि नेता किसी भी दल का हो नदियों का दुश्मन है. प्रदेश के गृह मंत्री का इलाका हो या विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का इलाका ,सब जगह निष्ठां और समर्पण भाव के साथ रेत का अवैध उत्खनन चल रहा है .कम से कम कलियुग में तो कोई सत्ता इसे रोक नहीं सकती .यदि रुक जाये तो इसे आप दुनिया का आठवां आश्चर्य कह सकते हैं . 


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